पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१५५

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लगा कि कलह का, कर्तव्यशून्यता का और बड़े बूढों के अभाव का यही नमूना है । जो काम बृढे में वर्षों के परिश्रम से, अनुभब से तैयार किया था वह महीने में, घंटों में नष्ट हो गया। वर्षों की मिहनत से पाला पोसा फूलदार, फलदार वृक्ष मूर्खता की छाँधी ने जड़ से उखाड़कर फेंक दिया ।

इस फोटो से पाठक समझ सकते हैं कि बूढे, बुढ़िया दे जब वापिस आकर घर में पैर रखा तब धौले दुपहर के भव्य प्रकाश के बदले भर भादों की ताराशून्य घेार अँधियारी रात थी । सबने सब ही की आ आकर बाप के आगे चुगलियाँ खाई । सव ही अपने अपने मन को निर्दोष हैं और उनके सिवाय दूसरा दोषी । सब से अधिक देश सेवा पर, उनकी बहू पर मढ़ा गया; किंतु ऐसे झूठे अपराधों के लिये अपना सफाई दिखलाकर वे कसम खाने तक को तैयार हैं, गंगा उठाने में सक्षद्ध हैं। इन दोनों की गवाही भगवानदास के अंतरंग मित्र ने भी दी। उसने आदि से अंत तक एक एक का पृथक् पृथक इतिहास सुनाकर स्पष्ट कह दिया कि इन दोनों का कुसूर बिलकुल नहीं। इन दोनों ने जिस तरह बिपत् झेली है परमेश्वर ही जानता है । भूखों मर मरकर रात काटी है। इनके पास दाना चबाने के लिये भी कुछ नहीं रहा। इतना कहकर उसने सलाह दी कि---"तुम अपने सामने सब के हिस्से बाँट दो ! नहीं तो इनमें सदा ही जूता चलता रहेगा । ये अदालत तक पहुँचकर, अमले