पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१७८

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हिंदी में इस प्रकार की स्त्रियों के उपयोगी पुस्तके न मिलने से बहुत खेद हुआ और उन्होंने मराठी, गुजराती से भाषांतरित करके हिंदी में इस अभाव की पूर्ति करने का संकल्प भी कर लिया।

पंडित जी को यहाँ रहने के दिनों में जो दूसरा काम करना था उसका संबंध गोरक्षा से था । उन्होंने इस विषय में चौवालोसवे प्रकरण में जो राय देकर छोटे भैया के लिये संकेत किया था उसका हूबहू फोटो उनके सामने खड़ा हो गया। इनके यहाँ गोसेवा दो भागों में बंटी हुई थी। एक घर में और दूसरी बगीचे में । घर में गृहस्थी के उपयोगी जो गौवें रहती थीं उनकी सेवा का भार पहज सुखदा नें हो उठा रक्खा था और अब दोनों मिल गई । उनका दूध, दही, मटा छौर मक्खन ठाकुर जी के नैवेद्य में काम आता है । उसमें से छांछ मुहल्लेवालों को भी बाँटी जाती है । गोबर और गोमूत्र घर को पवित्र करता है । जव उनके यहाँ नित्य ही वैश्वदेवादि यज्ञ होते हैं, और उनके लिये हर बात में गोमाता की आवश्यकता है तब इस बात का तो कहना ही क्या ? किन्तु नित्य प्रातःकाल उठकर दोनों बहुएँ लिलाट पर रोली का तिलक लगाए, सैभाग्य चिह्न धारण किए, दोनों मिलाकर गंधाक्षत से गोमाता का पूजन करती हैं। रात में उठ उठकर वे इस बात की खबरदारी रखती हैं कि उनके बैठने की जगह गीली न रहने पावे । वे अपने हाथों से उनके सामने वाला डालती हैं और सानी करके उन्हें मिलाती हैं ।