पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/७१

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ढ़ाई तो अब क्या घबड़ाऊंगी? अब वे दोनों आने ही वाले हैं । वे जैसी आज्ञा दे वैसा करने का तैयार हूं । उसने भी अपने उसूलों के लिए मुआफी मांगगी ।"

इतने कहते हुए सुखदा रोने लगी । पति ने धीरज दिलाकर दिलासे के वचन कहकर उनको संतुष्ट किया और तब वह अपने काम काज में प्रवृत्त हुए । ऐसे कांतानाथ अपने काम में लग ही गए तो क्या हुआ किंतु उनके अंत:करण में एक तरह का खटका हो गया। अब उन्हें दो बातों की चिंता थी । एक इस प्रकार की बदनामी उड़ाने कौन कौन हैं और दूसरे हमारे लिये सर्व साधारण की राय क्या है ?जब से वह अधबिच में यात्रा छोड़कर घर आए उन्होंने अपने काम काज में विशेष जी लगाकर, नए नए कम खोलने में प्रवृत्त होकर लेने से मिलने भेटने से मन खैंच लिया था । संसार का मुख्य सुख, यावत् सुखो का केंद्र स्त्री और उसके ऐसे कुकर्म । बस इन बातों को याद करके वह एक तरह दुनिया ही से उदासीन हो गए थे। क्योंकि अपने नित्य और नैमित्तिक काम में दिन रात उलझे रहने के सिवाय यदि वह जरा सा भी अपने जी को किसी तरफ लगाते तो उनके सामने स्त्री के कर्म, उसके दडं इत्यादि बातें आ खड़ी होती थीं । वह अपने भाव' का बहुतेरा छिपाते किंतु जो बात मन में होती हैं मुख उसकी चुगली खा दिया करता है । लोगों से न मिलने जुलने का एक यही प्रधान कारण था ।