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पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/१११

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आनन्द मठ


करनेवाली किलकारियां सुनाया करते थे, वहीं अब झण्डके झंड मतवाले जंगली हाथी वृक्षोंकी डालें तोड़ते नजर आने लगे। जहां कभी दुर्गाजीकी पूजा हुआ करती वहां स्यारोंकी मांद हो गयी, जहां सावन में ठाकुरजीका झूला होता था वहां आज उल्लुओंने अपना अड्डा जमा लिया। नाट्य भवनमें दिनदहाड़े काले नाग मेढ़क खोजने लगे। बंगाल में आज अन्न उपजा है तो खानेवाले नदारद हैं, बिकनेवाली चीजें पैदा हुई है पर कोई खरीदार नहीं है। किसानोंने खेती की, पर रुपया नहीं पाया। इसीलिये वे जमींदारको मालगुजारी नदे सके। राजाने जमींदारोंसे मालगुजारी न पाकर उनकी जमींदारियां जब्त करनी शुरू कीं, इसलिये धीरे धीरे जमींदार दरिद्र होने लगे। वसुमतीने खूब अन्न उपजाये, पर किसीको धन नहीं मिला-सबका घर धनसे छूंछा ही नजर आने लगा। लूट-खसोटके दिन आये; चोर डाकुओंने सिर उठाया, सजन लोग डरके मारे घरोंमें छिप रहे।

इधर सन्तान सम्प्रदायवाले नित्य चन्दन और तुलसीदलसे विष्णु भगवानके पादपद्मोंकी पूजा करते और जिसके घरमें पिस्तौल या बन्दूक मिलती, उसके घरमें घुसकर उसे छीन लाते। भवानन्दने सब किसीसे कह दिया था, कि “अगर किसी घरमें एक और मणि-माणिक्य और हीरा मोती हो और दूसरी ओर एक टूटी हुई बन्दुक पड़ी हो, तो सब मणि-माणिक्य और हीरा-मोती छोड़कर वह टूटी हुई बन्दुक ही ले आना।"

इसके बाद वे लोग गांव गांवमें अपने दूत भेजने लगे। वे लोग जिस किसी ग्राममें जाते, वहांके हिन्दुओंको देख देखकर कहते,-"क्कों भाई! विष्णु-पूजा करोगे?" यही कह कहकर वे २०-२५ आदमियोंका दल बांध लेते और मुसलमानोंके गांवमें जाकर उनके घरोंमें आग लगा देते थे। मुसलमान बेचारे इधर अपनी जान बचानेमें लगते, तबतक उधर सन्तान सम्प्रदायवाले उनका सर्वस्व लूट पाटकर नये विष्णु-भक्तोंको बांट देते थे।