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पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/११२

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पहला परिच्छेद


लूटका माल पाकर जब गांववाले बड़े आनन्दित होते, तब ये लोग उन्हें विष्णु-मन्दिरमें ला, प्रतिमाके पैर छुलाकर उन्हें सन्तान धर्म में दीक्षित कर लेते थे। लोगोंने देखा कि सन्तान होने में तो बड़ा लाभ है। मुसलमानी सलतनतकी अराजकता और कुशासनके कारण सब कोई मुसलमानोंसे जल उठे थे। हिन्दू धर्म लुप्त हुआ जा रहा था, इसलिये बहुतसे लोग हिन्दुत्वकी स्थापनाके लिये भी चिन्तित हो रहे थे, अतएव दिन दिन सन्तानोंकी संख्या बढ़ने लगी। एक एक दिनमें सैकड़ों और एक एक महीनेमें हजारों नये नये लोग आकर सन्तान बनने और भवानन्द तथा जीवानन्दके चरणोंमें सिर झुकाने लगे। तथा दलके दल चारों ओर मुसलमानोंको दण्ड देनेके लिये जाने लगे। वे जहां कहीं राजकर्मचारियोंको देख पाते, वहीं उनकी मरम्मत करने लगते। कभी कभी तो उनके प्राण ही ले डालते थे। जहां कहीं सरकारी खजाना पाते उसपर छापा मारते, और लूट पाट कर घर ले आते। जहां कहीं मुसलमानोंकी बस्ती मिलती, उसमें आग लगा देते और गांवके गांव जलाकर धूलमें मिला देते। राजपुरुषगण इनका दमन करनेके लिये फौज रवाना करने लगे, पर इस समय सन्तानोंका दल खूब हुआ था। उनके पास हथियार भी काफी थे और वे ठीक भी हो गये थे। उनके वीर दर्पके आगे मुसलमान सैनिकोंके पैर आगे नहीं बढ़ते थे। यदि कदाचित् वे आगे आते तो सन्तानगण अपने अमित बल पराक्रमसे उनपर भीषण आक्रमण करते, उनके दलको छिन्न भिन्नकर हरि हरिको ध्वनि करते। यदि किसी सन्तान दलको मुसलमान सैनिक परास्त कर डालते, तो उसी समय उनके सम्प्रदायका दूसरा दल वहां आ पहुंचता ओर जीतनेवालोंके सिर घड़से जुदा कर हरि हरि कहता हुआ निकल जाता था।

इस समय परम प्रसिद्ध, भारतीय अंगरेज कुलके प्रातः सूर्य वारन हेस्टिंग्ज भारतवर्षके गवर्नर जनरल थे। कलकत्तेमें बैठे