उन दिनों कम्पनीकी अनेक रेशमकी कोठियां थीं। ऐसी ही एक कोठी शिवग्राममें भी थी। डनवर्थ साहब उस कोठीके मालिक थे। उस समय इन कोठियोंकी रक्षाका बड़ा अच्छा बन्दोबस्त था। इसीसे डनवर्थ साहब किसी तरह अपनी जान बचा सके, पर उन्हें अपने बाल-बच्चोंको कलकत्ते भेज देना पड़ा। सबको भेजकर वे आप सन्तानोंके उपद्रव सह रहे थे। इसी समय कप्तान टामस साहब अपनी कुछ फौजके साथ वहां इस समय सन्तानोंका उत्साह देखकर बहुतसे चोर चाई तथा डोम चमार और भुइयां नीच जाति वाले बेफिक्रोके साथ लूट खासोट मचाने लगे थे। इन लोगोंने टामस साहबकी रसदपर भी छापा मारा। कप्तान साहबकी फौजके लिये गाड़ियों पर बहुत सी उमदा घी, मैदा, मुर्गी और चावल आदि चीजें लदी जा रही थीं। यह देखकर डोम चमारोंके मुहमें पानी भर आया। उन्होंने गाड़ी पर हमला कर दिया, परन्तु कप्तान टामसके सिपाहियोंके हाथमें जो बन्दूकें थी, उन्होंके कुन्देको मारसे वे भाग गये। कप्तान टामसने कलकत्ते रिपोर्ट भेजी कि आज मैंने सिपाहियोंके ही सहारे १४७०० विद्रोहियोंको परास्त कर डाला है। विद्रोहियोंमेंसे २१५३ आदमी मरे, १२५३ घायल हुए और सात कैद कर लिये गये हैं। पर केवल यही अन्तिम बात रिपोटभरमें सच्ची थी। कप्तान टामस, अपने मनमें ऐसा समझकर, मानों उन्होंने केनहिम या रसवाककी सी कोई बड़ी भारी लड़ाई ही जीती है, घमंडसे अकड़े हुए, मूछोंपर ताव देते हुए निर्भय इधर उधर घूमने लगे, साथ ही डनवर्थ साहबको उपदेश भी देने लगे
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