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आनन्द मठ

अब क्या डर है अब अपने बाल-बच्चोंको कलकत्तेसे यहीं ले आओ; विद्रोहका तो मैंने अंत ही कर दिया। डनवर्थ साहबने कहा,-"अच्छी बात है, आप यहां दस दिन और ठहर जाइये। देशथोड़ा और स्थिर हो जाय, तब मैं अपने स्त्री-पुत्र आदिको बुलवा लूंगा।" डनवर्थ साहबने बहुतसी मुर्गियां और भेड़ें पाल रखी थीं। उनके यहांका पनीर भी अच्छा होता था। तरह तरह को जंगली चिड़ियोंका मांस उनके भोजनालयकी शोभा बढ़ाया करता था। इधर लम्बी दाढ़ीवाला बावर्ची भी मानों द्रौपदीका ही अवतार था। इसलिये कप्तान टामस बड़ी बेतकल्लुफीके लाथ वहीं रहने लगे।

इधर भवानन्द मन ही मन दांत पीस रहे थे। वे यही सोच रहे थे कि कब टामस साहबका सिर काटकर द्वितीय सम्बरारिकी उपाधि धारण कर लूं। अंग्रेज लोग भारतवर्षकी भलाई करने आये हैं, उस समय संतानोंकी समझमें यह बात नहीं आती थी। समझते भी कैसे? कप्तान टामसके समान अंगरेज भी इस बातको नहीं जानते थे। उस समय यह बात विधाताके मनमें ही छिपी हुई थी। भवानन्द सोच रहे थे, “एक दिन इन असुरोंका सवंश नाश करूंगा। सबको जमा होकर यहां चले आने दो, बस उनकी जरा सी असावधानी देखते ही उनपर टूट पड़गा। अभी जरा दूर ही दूर रहनेका काम है।” इसीलिये वे अपने दलबल समेत दूर ही दूर रहे। कप्तान टामस निष्कण्टक होकर द्रौपदोके गुणों की बानगी लेने लगे।

साहब बहादुरको शिकारका बड़ा शौक था, इसलिये वे कभी कभी शिवग्रामके पासवाले जंगलमें शिकार खेलनेके लिये जाया करते थे। एक दिन टामस साहब डनवर्थ साहबके साथ घोड़ेपर सवार हो, कई एक शिकारियों के साथ शिकार खेलने निकले यह तो कहना ही व्यर्थ है कि टामस साहब बड़े भारी साहसी और बलवीर्यमें अंगरेजोंमें भी अद्वितीय थे,