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आनन्द मठ


या न मारुं, कि इतने उस संन्यासीने बिजली की तरह तड़पकर साहबके हाथकी बन्दूक छीन ली। इसके बाद संन्यासीने अपना रक्षावरण-चर्म खोलकर फेंक दिया और एक ही झटके में जटा भी हटाकर दूर कर दी। कप्तान टामसने देखा, कि एक अपूर्व सुन्दरी सामने खड़ी है। सुन्दरीने हँसते हँसते कहा,-"साहब! मैं स्त्री हूं; मैं किसीको मारती नहीं। मैं तुमसे पूछती हूँ कि हिन्दू मुसलमानोंमें झगड़ा होता है, तुम लोग क्यों बीचमें कूदते हो? अपने घर चले जाओ।"

साहब-"टुम कोन हाय?"

शान्ति-“देखते तो हो कि मैं संन्यासिनी हूँ, तुम जिनके साथ लड़ाई करने आये हो, उन्हीं में से किसी एककी पत्नी हूं।"

साहब-"टुम हमारा धारपर चलेगा?"

शान्ति- क्या तुम्हारी रखेली होकर?"

साहब-“औरटका माफिक रहना, लेकिन शाडी नहीं होगा।"

शान्ति-"अच्छा, मैं भी तुमसे एक बात पूछती हूं, हमारे घरपर पहले एक बन्दर था पर हालमें वह मर गया। पींजरा खाली पड़ा है। क्या तुम उसके पीजरेको आबाद करने चलोगे? मैं तुम्हारी कमरमें भी साँकल बांध दूंगी। हमारे बागीचे में खूब मीठे केले फलते हैं, उन्हें भरपेट खाया करना।"

साहब-"टुम बड़ा बहादुर औरट है। टुमारा साहस देखकर हम बहुट खुशी हुआ। टुम हमारा घारपर चलो टुमारा खाविण्ड टो लड़ाईमें मारा ही जायगा; फिर टुम क्या करेगा?"

शान्ति-"अच्छा, तो हमलोग अभीसे आपसमें एक बात तै कर रखें। युद्ध तो दो चार दिनोंमें होगा ही। यदि उस लड़ाई में तुम जीतोगे, और मैं जीती बचुंगी, तो तुम्हारी रखेली होकर रहूंगी। पर कहीं हमारी जीत हुई, तो तुम हमारे घर आकर बन्दर बनकर पींजरेमें रहोगे और केले खाया करोगे न?"