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पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/१५२

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ग्यारहवां परिच्छेद


इसी समय एक गोरेने भवानन्दपर हमला किया, जिसका जवाब उन्होंने हमलेसे दिया।

धीरानन्द कहते गये-“वे कल्याणीको गीता पढ़ा रहे थे, उसी समय तुम वहाँ पहुंचे। देखो, सावधान!"-"भवानन्दकी बायीं भुजा भी कटकर गिर पड़ी।

भवा०-“अच्छा, उनको मेरे मरनेका हाल सुनाते हुए कह देना कि मैं अविश्वासी नहीं हूं।"

आंखोंमें आंसू भरकर धीरानन्द युद्ध करते-करते बोले-“सो तो वे ही समझे। कल उन्होंने जो आशीर्वाद किया था उसे याद करो। उन्होंने मुझसे कह रखा था कि आज भवानन्द मरेगा, तुम उसके पास ही रहना और उससे मरते समय कह देना कि मेरे आशीर्वादसे उसे मरने के बाद वैकुण्ठवास होगा।"

भवानन्दने कहा-“सन्तानोंकी जय हो।, भाई! मरते समय एक बार 'वन्देमातरम्' गान तो मुझे सुना दो।" उसी समय धीरानन्दके आज्ञानुसार सभी युद्धोन्मत्त सन्तान ललकारके साथ 'वन्देमातरम्' गाने लगे। इससे उनकी भुजाओंमें दुगुना बल आ गया। उस भयङ्कर मुहूर्त में ही बाकी बचे हुए गोरे भी मारे गये। सारी युद्धभूमिपर सन्नाटा छा गया।

उसी मुहूर्त में भवानन्दने भी मुंहसे 'वन्देमातरम्' गाते और मन-ही-मन विष्णु भगवान्के चरण-कमलोंका ध्यान करते हुए परलोककी यात्रा की।

हाय रे रमणी रूप लावण्य! इस संसारमें सबसे बढ़कर तुझे ही धिक्कार है!