सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/१८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८९
परिशष्ट

यों के एक गिरोह ने परगमा सिपाहियों के दो दलों को हरा दिया है और उनके दो सेनानायकों को मार डाला है। एक तो कप्तान टामस थे जिसे आप जानते होंगे। ब्रिगेड सिपाहियों के दल इस समय उनका पीछा कर रहे हैं। वे लड़ न सकेंगे, क्योंकि न तो उनके पास डेरे-खीमे हैं, जिससे जगह-ब-जगह पड़ाव डाल सकें, न उनके पास सैनिकों के योग्य कपड़े-लत्ते हैं, इसलिये उनका भागना निश्चित है। तो भी मुझे आशा है कि वे कुछ कर दिखायेंगे; क्योंकि बीच-बीच में नदियां पड़ती हैं, जिनके पार उतरना संन्यासियों के लिये मुश्किल हो जायगा। अगर हमारे सौनिक ठिकाने से उनका पीछा करते चले गये।"

"इन लोगों का इतिहास बड़ा विचित्र है। ये तिब्बत की पहा ड़ियों के दक्खिन, काबुल से चीन तक फैली हुई विस्तृत भूमि में रहते हैं। प्रायः नंगे रहते हैं और न तो इनकी कोई निश्चित बस्ती है, न घर-द्वार है, न जोरू-बच्चे हैं। ये एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते हैं और जहां कहीं हट्टे-कट्ट बालक देख पाते हैं, वहीं से उन्हें उड़ा लाते हैं। इसी से ये लोग हिन्दुस्थान में सबसे बढ़कर वीर और मुस्तैद मनुष्य हैं। इनमें कितने ही सौदागर भी हैं। ये सब रमते योगी हैं और सब लोग इनका बड़ा सम्मान करते हैं। इसी कारण हमलोगों को सर्वसाधारण से न तो इनके बारे में कुछ पता मालूम होता है, न इन्हें दबाने में सहायता मिलती है—यद्यपि इसके विषय में बड़े कड़े-कड़े हुक्मनामे जारी किये गये। ये लोग कभी-कभी इस प्रान्तमें ऐसे घुस पड़ते हैं, मानों आसमान से टपक पड़े हों। ये बड़े हट्टे-कट्टे साहसी और अतुल उत्साहवाले होते हैं। हिन्दुस्थान के ये 'जिपसी'[]अर्थात् संन्यासी ऐसे ही अद्भुत हैं।"


  1. 'जिपसी' युरोप के कञ्जरों को कहते हैं, जिनके न तो घर-द्वार होता है, न कहीं जगह। इधर-उधर घुमना और लुट-पाटकर खाना ही इनका काम है।—अनुवादक।