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पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/१८८

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परिशिष्ट क

संन्यासी-विद्रोहका इतिहास

[लेगके 'स्मरण लेख' में प्रकाशित वारन
हेस्टिंग्ज के पत्रोंसे उद्धृत।]

वारन हेस्टिंग्ज ने सर जार्ज कोलब्रुक के पास २री फरवरी १७७३ के पत्र में निम्नलिखित बातें लिखी थीं:—

"आपको संन्यासियों अर्थात् रमते फकीरोंके उपद्रव का वृत्तान्त मालूम ही होगा। ये लोग हर साल इसी समय हजार दस हजार का दल बांधकर जगन्नाथजी की यात्रा पर जाते हुए, इस प्रान्त में उपद्रव मचाते हैं। कप्तान टामस नामक एक वीर सैनिक अफसर इन लुटेरों के फेरमें पड़कर मारा गया। उसने थोडे से देशी सिपाहियों को लेकर ३००० लुटेरों का रङ्गापुर के समीप सामना किया था। टामस के सिपाही बड़ी बहादुरी के साथ लड़े और अपनी योग्यता से अधिक प्रशंसा के पात्र बने। उत्तरी जिलों में इनके उपद्रवों का मालगुजारी पर बुरा प्रभाव पड़ा है। सिपाहियों के नूतन संगठन से, जो कि कोर्ट आफ डाइरेक्टर्स के आदेशानुसार किया गया है और उनपर जिस ढङ्गसे प्रान्त की रक्षा का भाग अर्पण किया जा रहा है, उससे आशा की जाती है कि भविष्य में इनके उपद्रवों से यहां की रक्षा भलीभांति हो सकेगी।"

(क्लेग के स्मरण-लेख, भाग १२८२)

इसके बाद ९वीं मार्च को जोशिस डिउप्रे के पास हेस्टिंग्ज साहब ने जो पत्र लिखा था उसमें उन्होंने इस सम्बन्ध में लिखा था:—

"मेरे प्रान्तमें इस वर्ष खासा युद्ध छिड़ गया है। संन्यासि-