पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२६–संग्राम
ले० उपन्याससम्राट् श्रीयुक्त प्रेमचन्दजी

मौखिक उपन्यास एवं कहानियां लिखने में प्रेमचन्दजी ने हिन्दी में वह नाम पाया है जो आजतक किसी हिन्दी-लेखक को नसीव नहीं हुआ उनके लिखे उपन्यास 'प्रेमाश्रम एवं सेवासदन' तथा 'सप्तसरोज' प्रेमपूर्णिमा और 'प्रेमपचीसी' आदि पुस्तकों की सभी पत्रों ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की है।

इन उपन्यासों और कहानियों को रचकर उन्होंने हिन्दी-संसार में नवयुग उपस्थित कर दिया है, नये तथा पुराने लेखकों के सामने भाषा की प्रौढ़ता मौलिकता, विषय की गम्भीरता और रोचकता का आदर्श रख दिया है।

उन्हीं प्रेमचन्दनी की कुशल लेखनी द्वारा यह 'संग्राम' नाटक लिखा गया है। यों तो उनके उपन्यासों में ही नाटक का मजा आ जाता है फिर उनका लिखा नाटक कैसा होगा यह बताने की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती। प्रस्तुत नाटक में मनोभावों का जो चित्र खींचा है वह आप पढ़कर ही अन्दाजा लगा सकेंगे। बढ़िया-एन्टिक कागजपर प्रायः २७५ पृष्ठों में रूपी पुस्तकका मूल्य केवल १॥)

२७–चरित्रहीन
ले० श्रीयुक्त शरच्चन्द्र चट्टोपाध्याय

बंगाल में श्रीयुक्त शरत् बाबू के उपन्यास उच्च कोटि के समझे जाते हैं। तथा उनके लिखे उपन्यासों का बंगला में बड़ा आदर है। उनके लिए उपन्यास पढ़ते समय आंखों के सामने घटना स्पष्ट रूप से भासने लगती है। युवा पुरुष बिना पूर्ख देख रेखके किस तरह चरित्रहीन हो वैठते हैं, सच्चा स्वामिभक्त सेवक किस तरह दुर्व्यसनके पंजों से अपने मालिक को छुड़ा सकता है। इसके अतिरिक्त पति-पत्नी का प्रेम, पतिव्रता की पति सेवा और विधवा जिया दुष्टों के बहकावे में पड़कर कैसे अपने धर्मकी रक्षा कर सकती है, इन सब बातों का इसमें पूर्णरूप से दिग्दर्शन कराया गया है। पृष्ठ ६६४ जिल्दसहित मूल्य ३।) रेशमी ३॥)