३३–प्रेम-पचीसा
ले° उपन्या स-सम्राट् श्रीयुक्त प्रेमचन्दजी
प्रेमचन्दजी का नाम ऐसा कौन साहित्य-प्रेमी है जो न जानता हो। जिन प्रेमाश्रम की धूम दैनिक और मासिक पत्रों में प्रायः बारह महीने से मची हुई है उसी प्रेमाश्रम के लेखक बाबू प्रेमचन्दजी की रचनाओं मेंसे एक यह भी है। 'प्रेमाश्रम', 'सप्त सरोज', प्रेम पूर्णिमा' और 'सेवासदन' आदि उपन्यासों और कहानियोंका जिसने रसास्वादन किया है वह तो इसे बिना पढ़े रह ही नहीं अकता। इसमें शिक्षाप्रद मनोरञ्जक २५ अनूठी कहानियां हैं। प्रत्येक कहानी अपने अपने ढङ्गकी निराली है। कोई मनोरञ्जन करती है, तो कोई सामाजिक कुरीतियोंका चित्र चित्रण करती है। कोई कहानी ऐसी नहीं है जो धार्मिक अथवा मैतिक प्रकाश न डालती हो। पढ़ने में इतना मन लगता है कि कितना भी चिन्तित कोई क्यों न हो प्रफुल्लित हो जाता है। भाषा बहुत सरल है। विद्यार्थियों के पढ़ने योग्य है। ३८४ पृ° की पुस्तकका खद्दरकी जिल्द सहित बल्य २१७-रेशमी जिल्दका २॥।)
३४–व्यावहारिक पत्र-बोध
ले° पं° लक्ष्मणप्रसाद चतुर्वेदी
आजकल की अंग्रेजी शिक्षा में सबसे बड़ा दोष यह है कि प्रायः अंग्रेजी शिक्षित व्यवहार-कुशल नहीं होते। कितने तो शुद्ध बाकायदा पत्र लिखना तक नहीं जानते। उसी प्रभावकी पूर्ति के लिये यह पुस्तक निकाली गयी है। व्यापारिक पत्रोंका लिखना, पत्रों का उत्तर देना, प्रार्थनापत्रों का बाकायदा लिखना बया आफिसियल पत्रों का जवाब देना आदि दैनिक जीवन में काम आनेवाली बातें इस पुस्तक द्वारा सहज ही सीखी जा सकती है। व्यापारिक विद्यालयो (Commercial Schools) की पाठ्य-पुस्तकों में रहने लायक यह पुस्तक है। अन्यान्य विद्यालयों में भी यदि पढ़ायी जाय तो लड़कों का बड़ा उपकार हो। विद्यार्थियों के सुभीते के लिये ही खगभग १२५ पृ° की पुस्तकको कीमत ॥=) रखी गयी है।