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आनन्द मठ


ब्रह्मचारीने न जाने किस बातका इशारा किया; पर न तो कोई उठकर खड़ा हुआ, न कोई बोला, न कोई कुछ हिला डुला वे सबके सामने से, हरएकको देखते हुए निकल गये, अंधेरे में हर एकका चेहरा बड़े गौरसे देखते हुए चले, पर शायद वे जिसे खोज रहे थे, उसे न पा सके। खोजते खोजते, एकको पहचान कर उन्होंने उसका अङ्ग-स्पर्शकर कुछ इशारा किया। इशारा करते ही वह उठ खड़ा हुआ। ब्रह्मवारी उसे दूर ले जाकर खड़े हुए। वह आदमी नौजवान था। काली काली दाढ़ी मूछोंसे उसका चांदसा चेहरा छिपा हुआ था। वह बड़ा बलिष्ट और अति सुन्दर पुरुष मालूम पड़ता था। गेरुआ वस्त्र पहने था और सारी देहमें चन्दन लगाये हुए था। ब्रह्मचारीने उससे कहा,

"भवानन्द! क्या तुम महेन्द्रसिंहका कुछ पता ठिकाना जानते हो?" यह सुन, भवानन्दने कहा-"महेन्द्रसिंह आज सवेरे स्त्री कन्याके साथ घर छोड़कर जा रहे थे। रास्ते में एक चट्टोमें-"

इतना सुनते ही ब्रह्मचारी बीच हीमें बोल उठे,-"चट्टोमें जो हुआ, वह मुझे मालूम है, पर तह तो कहो, यह किसकी कार्रवाई थी?" भवानन्द,-"गांवके नीच जातियोंका काम है, और क्या? इस समय सभी गांवोंकी नीच जातियां पेटकी मारसे डाकू बन गयी हैं। आजकल कौन डाकू नहीं हो रहा है? आज हमलोगोंने ही लूटकर अन्न पाया है; कोतवाल साहबके लिये दो मन चावल जा रहे थे, हमलोगोंने उसे लूटकर वैष्णवोंको खिला दिया।"

ब्रह्मचारीने हंसकर कहा, "मैंने चोरोंके हाथसे उसकी स्त्री कन्याको तो बचा लिया है और इस समय उन्हें मठमें ही रख छोड़ा है। अव मैं तुम्हारे ऊपर इसको भार सौंपता हूं, कि महेन्द्रको ढूढ़ निकालो और उसकी स्त्री कन्याको उसके