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आनन्द मठ


डुला नहीं। सिपाहीने उसे जाकर पकड़ लिया। वह कुछ न बोला। उसे पकड़कर वह हविलदारके पास ले गया, तोभी वह कुछ न बोला। हविलदारने कहा, इसके सिरपर गठरी रख दो। सिपाहीने उसके सिरपर गठरी रख दी। उसने चुपचाप माथेपर गठरी रख ली। इसके बाद हविलदार पीछे फिरा और गाड़ीके साथ चला। इलो समय एकाएक पिस्तोलकी आवाज आयी हविलदारकी खोपड़ीमें गोली लगी और वह जमीनपर गिर पड़ा और मर गया। "इसी सालेने हविलदारको गोली मारी है” यह कहकर एक सिपाहीने उस मजदूरका हाथ पकड़ लिया। मजदूरके हाथमें उस समय भी पिस्तौल मौजूद थी, उसने झट सिरकी गठरी नीचे फेक पिस्तौलका घोड़ा दबाकर दनसे फायर की। सिपाहीका सिर छिद गया। उसने उसका हाथ छोड़ दिया। इसी समय हरि! हरि! हरि! का शब्द करते हुए दो सो हथियारबन्द जवानोंने वहां आकर सिपाहियोंको घेर लिया। समय वे बेचारे सिपाही साहबके आनेकी राह देख रहे थे साहबने यह सोचकर कि डाकुओंने छापा मारा है, सिपाहियोंको हुक्म दिया कि गाडियोंको चारों ओरसे घेरकर खड़े हो जाओ। विपत्तिके समय अगरेजोंका नशा टूट जाता है। सिपाही चारों ओरसे गाड़ीको घेरकर हथियार लिये हुए सामनेकी ओर मुंह किये खड़े हो रहे। सेनापतिके दूसरी बार हुक्म देते ही उन लोगोंने अपनी अपनी बंदूकें सीधी की। इसी समय न जाने किसने साहबकी कमरसे उनकी तलवार निकाल ली। तलवार लेकर उसने झटपट उनका सिर काट लिया। साहबका सिर कटकर धड़से अलग हो गया और वे फायर करनेका हुक्म न दे सके। सबोंने देखा कि एक आदमी बैलगाड़ीपर तलवार लिये खड़ा है और "हरि! हरि! हरि!” कहता हुआ सिपाहियों को मार डालनेका हुक्म दे रहा है। वह आदमी भवानन्द थे।

सहसा सेनापतिका सिर कटते देख और आत्मरक्षाकी