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पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/४

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प्रकाशक का निवेदन


आज हम हिन्दी-संसार के सामने सस्ती उपयोगी ग्रन्थ माला का प्रथम रत्न, आनन्द-मठ लेकर उपस्थित होते हैं। इतनी ग्रन्थ-मालाओं के होते हुए भी इस ग्रन्थ-माला के निकालने का एकमात्र यही उद्देश्य है कि उपयोगी और अलभ्य पुस्तकों को पाठकों के पास स्वल्प मूल्य में पहुंचाने की अधिकाधिक चेष्टा की जाय। प्रकाशन की व्ययसायिक वृत्तिपर ध्यान न देकर केवल प्रचार के उद्देश्य से हो इस माला के रत्न निकाले गये हैं।

'आनन्द-मठ' को इस माला का प्रथम रत्न बनाने का यही कारण है। इस पुस्तक की उपयोगिता सर्वविदित है। इसका प्रचार घर-घर होना चाहिये। पर इसके लिये कोई उपयुक्त साधन पहला अनुवाद, जो वेंकटेश्वर प्रेस बम्बई से निकला था, दुष्प्राप्य है, दूसरा अनुवाद भी अभी एक अन्य स्थान से निकला है, जिसमें मूल ग्रन्थ से बहुत काट-छांटकर अनुवाद करने पर भी मूल्य बहुत अधिक रखा गया है, अर्थात् उपयोगिता का ख्याल न कर लाभ पर विशेष दृष्टि रखी गयी है। इसलिये हमने यह तीसरा अनुवाद निकालने का प्रयत्न किया है जो बहुत ही कम मूल्य पर पाठकों की सेवा में उपस्थित किया गया है। आशा है, हिन्दी के उदार पाठक इस माला को सर्वथा उपयोगी समझकर इसे अपनाने की चेष्टा करेंगे।

अन्त में हम पण्डित जगन्नाथप्रसाद जी चतुर्वेदी के अतिशय कृतज्ञ हैं, जिन्होंने असीम कृपा कर बंगला 'वन्दे मातरम्' गान का अपना हिन्दी पद्यमय अनुवादउद्धृत करने की आज्ञा दी है।

विनीत

प्रकाशक