पृष्ठ:आनन्द मठ.djvu/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६
बारहवां परिच्छेद


यह कह कल्याणीने विषकी डिबिया जमीनमें रख दी। फिर दोनों व्यक्ति भूत और भविष्यके सम्बन्ध में बातें करने लगे। ध्यान बट गया। लड़कीने खेलते खेलते विषकी डिबिया उठा ली, दोनोंमेंसे किसीने न देखा।

सुकुमारीने उस डिबियाको कोई उमदा खिलौना समझा। उसने एक बार उसे बायें हाथले पकड़कर दाहिने हाथसे जोरसे दबाया। फिर दाहिने हाथ पकड़ कर बायें हाथ से दबाया। इसके बाद दोनों हाथोंसे उसे खोलनेकी चेष्टा करने लगी। अन्तमें डिबिया खुल गयी और विषको गोली नीचे गिर पड़ी।

गोली उसके पिताके कपड़ेपर गिरी थी। उसे देखकर सुकुमारीने सोचा कि यह कोई और भी अच्छा खिलौना है। डिबिया छोड़कर उसने गोलीको और हाथ बढ़ाया और उसे झटपट उठा लिया।

गोली उठाकर उसने मुंहमें डाल ली।

"क्या खाया? क्या खाया? हाय, सर्वनाश हुआ!” यह कह, कल्याणीने झट उसके मुहमें उंगली डाल दी। दोनोंने देखा कि विषकी डिबिया खाली पड़ी है। इसे भी एक तरहका खेल समझकर सुकुमारी अपनी नन्हीं नन्हीं दंतुलियां निकाल अपनी मांकी ओर देखकर हँसने लगी। इतने में विषकी गोली जो कसैली मालूम पड़ी तो सुकुमारीने झट मुंह बा दिया और कल्याणीने गोली उसके मुंहसे बाहर निकालकर फेंक दी। बालिका रोने लगी।

गोली ज्योंकी त्यों जमीनमें पड़ी रही। कल्याणी दौड़ी नदी से आंचल भिगो लायी और कन्याके मुंहमें जल निचोड़ने लगी। उसने अधीर होकर महेन्द्रसे पूछा,-"क्या कुछ जहर पेटमें भी चला गया है?

सबसे पहले सन्ततिकी दुष्कामना ही मां बापके ध्यान में