पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/११८

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मुख्य धंधे-पशु पक्षियों पर अवलंचित धंधे

मुख्य धन्धे-पशु-पक्षियों पर अवलम्बित पन्धे . से ऐसी भेड़ें उत्पन्न की गई हैं जो इतना अधिक ऊन उत्पन्न करती हैं कि ऊन के बोझ से वे चल फिर भी नहीं सकती । किसी किसी जाति की मैरिनो भेड़ पर एक फीट से मी लम्बा ऊन उत्पन्न होता है। ऊन का अच्छा अथवा बुरा होना उन स्थानों पर भी निर्भर है जहाँ भेड़ें पाला जाती हैं। यदि भेड़ के लिए यथेष्ट पानी न हुअा अथवा बीमारी हुई तो ऊन घटिया होगा । लम्बा ऊन कीमती होता है और बढ़िया काड़े बनाने के काम में आता है। और छोटे रेशे वाला ऊन कम्बल, गलीचे तथा अन्य मोटो वस्तुओं के बनाने के काम में आता है। संसार में सबसे अधिक मैरिनो ऊन ( ४० प्रतिशत) उत्पन्न होता है। यही नहीं मैरिनो ऊन की उत्पत्ति दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। क्रासबैड :(. Crossbred ) तथा कारपैट ( Carpet ) ऊन क्रमशः ३५ प्रतिशत तथा २५% प्रतिशत उत्पन्न होता है। आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में मैरिनो ऊन बहुत उत्पन्न होता है। यूरग्वे ( Uruguay ) तथा अरजैनटाइन (Argentina ) में भी कुछ मैरिनो ऊन उत्पन्न होता है। क्रासबैड (Crossbred ) ऊन को उत्पन्न करने वाले देशों में कमशः अरजैनटाइन, न्यूजीलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका, श्रास्ट्रेलिया, यूरग्वे (Uruguay ) तथा बृटेन मुख्य हैं। संसार में सबसे अधिक ऊन आस्ट्रेलिया में उत्पन्न होता है। अधिकतर भेड़ पालने का धंधा न्यू साऊथ वेल्स में बहुत होता है। पश्चिमी भाग में ऊन के लिये भेड़ें बहुत पाली जाती हैं । आस्ट्रेलिया के विशाल मरुभूमि प्रदेश में भेड़ें चराने की सुविधा नहीं है क्योंकि वहां पानी नहीं है । साथ ही वहाँ गरमी बहुत पड़ती है इस कारण वहां भेड़ें नहीं पाली जाती । श्रास्ट्रलिया के भेड़ चराने वालों को कुछ भागों में भेड़ों की बीमारियों का सामना करना पड़ता है । इन बीमारियों के कारण कहीं कहीं भेड़ को पालने में कठिनाई उत्पन्न हो गई है। यही नहीं आस्ट्रेलिया में एक प्रकार की कोटेदार वनस्पति ( Prickly pear ) होता है जो भेड़ के ऊन में चिपट जाती है और ऊन को खराब कर देती है । आस्ट्रेलिया के पूर्वीय वट पर पहाड़ की एक ऊँची और लम्बी दीवार खड़ी है। यह दीवार, पानी की हवाओं को रोक लेती है अतएव पहाड़ तथा समुद्र के बीच पतली पट्टी में खेती के लिए यथेष्ट पानी. बरसता है। किन्तु पहाड़ के पश्चिम की ओर पानी बहुत कम होता है अस्तु वहाँ केवल पास ही उत्पन्न हो श्रा० भू.-१४