पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/३६२

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मुख्य व्यापारिक देश

उपयोग कर सके। इसके ऊपर मिट्टी बिछा दी जाती है (लगभग ३ इंच) मुख्य व्यापारिक देश जलमार्ग तो कनाडा का अद्वितीय है ही परन्तु रेल मार्ग भी अच्छा है। जो कुछ उन्नति कनाडा में हो सकती है वह जन्न मार्ग तथा रेलों के ही कारण हो सकी है। कनाडा में तीन मुख्य रेल पथ हैं-(१) कनैडियन पैसिफिक रेलवे, (२) ग्रांड ट्रक पैसिफिक रेलवे, (६) कनेडियन नार्दर्न रेलवे । ये तीनों ही रेलें पूर्व से पश्चिम को मिलती हैं। इन रेलों को पश्चिमके राकी पर्वत माला के प्रदेश.में कहीं कहीं ५००० फीट से भी अधिक ऊँचाई को पार करना पड़ता है । कनाडा की रेलों को बनाने में बहुत परिश्रम और धन व्यय करना पड़ा है। सच तो यह है कि यदि ये रेलें पश्चिम को पूर्व से न जोड़ती तो पश्चिमी कनाडा एक जनशून्य भूभाग रहता। धरातल के बनावट की दृष्टि से संयुक्तराज्य अमेरिका तीन भागों में बाँटा जा सकता है-(१) पश्चिम में राकी पर्वत संयुक्तराज्य अमेरिका माला का पहाड़ी भाग, (२) पूर्व का अपलेशियन पर्वत माला का पहाड़ी प्रदेश, (३) मैदान । पश्चिम के पहाडी प्रदेश में चौड़ी चौड़ी घाटियों, नदियों की बेसिन, तथा ऊँचे पहाड़ों की बहुतायत है । इनमें कैलीफोर्निया की घाटी बहुत उपजाऊ और आर्थिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मैदान पश्चिम में राकी पर्वत माला के समीप ऊँचे तथा पूर्व में नीचे हैं । मैदानों के मध्य में प्रेरी ( Prairies ) हैं। अस्लेशियन पर्वत माला का पहाड़ी प्रदेश पश्चिम की भाँति अधिक ऊँचा नहीं है। यह प्रदेश ऊँचे नीचे पठारों और घाटियों से भरा हुआ है। यह तो पहले ही कहा जा चुका है कि संयुक्तराज्य अमेरिका के पूर्वी भाग में वर्षा अधिक होती और जैसे जैसे पश्चिम की ओर बढ़ते जाते हैं वैसे वैसे ही वर्षा कम होती जाती है। १००° देशांश रेखा इन दो भागों को विभक्त करती है। इसके पश्चिम में शुष्क भाग है और पूर्व में वर्षा अधिक है ! पूर्व भाग में खेती बहुत होती है और घास भी बहुतायत से उत्पन्न होती है। पश्चिमी भाग में वर्षा कम होने से सिंचाई अथवा सूखी खेती ( Dry farming ) होती है और घास उत्पन्न होती है जिसके कारण पशुपालन खूब होता है। उत्तरी अमेरिका में पश्चिमी भाग में सूखी खेतो ( Dry farming) की रीति खूब सफल हुई है । सूखी खेती का सिद्धांत यह है कि वर्षा- के पूर्व खेतों को खूब जोता जाता है फिर नीचे की भूमि को दवा कर ठोस बना दिया जाता है जिससे वर्षा का जन्म अधिक गहराई तक न जा सके और पौधा उसका । श्रा० भू०-४५