आर्थिक भूगोल बाहर से जितने भी आक्रमणकारियों ने आक्रमण किया उनकी सेनाओं ने इन्ही दरों में कूच किया था। पूर्व में ब्रह्मपुत्र नद के मोड़ के आगे हिमालय को शाखायें दक्षिण की और चली गई हैं । पटकोई, नागा, तथा लुशाई पहाड़ियाँ आसाम को ब्रह्मा से पृथक करती हैं। मनीपूर राज्य में होती हुई ये पहाड़ियां ब्रह्मा के अराकान योमा से मिल जाती हैं और इरावदी के मुहाने के पश्चिम की ओर नीग्रेस अन्तरीप में समाप्त हो गई हैं। इनके अतिरिक्त व्यन्तिया, खासी और गारो श्रासाम की घाटी को सिलहट और कछार से अलग करती हैं। हिमालय की पूर्वीय श्रेणियाँ सघन वनों से आच्छादित हैं। हिमालय की तीसरी श्रेणी जिसे महान हिमालय के नाम से पुकारा जाता है और दूसरी श्रेणी के बीच दो चौड़ी घाटिया हैं । काठमांडू की घाटो और काश्मीर की घाटी । यह बहुत चौड़े मैदान हैं जो पाँच हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित हैं और चारो ओर ऊँचे पहाड़ों घिरे हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह पहले विशाल झीलें थीं जो मिट्टी से मर जाने के कारण मैदानों में परिणत हो गई। इसी प्रकार शिवालिक और हिमालय के बीच में चौड़ी घाटियाँ हैं जिन्हें दून कहते हैं । इसी लिए देहरादून नाम पड़ा है । हिमालय से जो मिट्टी और पत्थर तेज़ नदियाँ बहाकर लाती हैं उनके जमने से ये घाटियां बनी हैं। ये नदियों के बहाव में शिवालिक पहाड़ों से रुकावट पड़ती है इस कारण ये नदियाँ बहुत सी मिट्टी और पत्थर उन मैदानों में जमा कर देती हैं जो शिवालिक और हिमालय की प्रारम्भिक पहाड़ियों के बीच में हैं। हिमालय के साथ साथ जहाँ वे मैदानों से मिलते हैं मैदान हैं जिन्हें भाभर कहते हैं जिनमें नदियों की लाई हुई मिट्टी, रेत और पत्थर जम जाता है। भामर में वास्तव में चूने के पत्थर का बाहुल्य है इस कारण छोटी छोटी नदियाँ यहाँ सूख कर अन्दर बहती हैं और केवल बड़ी नदियाँ ही ऊपर रह जाती हैं। यह भाभर के मैदान उत्तर और उत्तर पश्चिम में अधिक विस्तृत है किन्तु पूर्व में कम विस्तृत हैं। यह जल जो कि भाभर में सुख जाता है वहीं फिर प्रगट होता है जहाँ कि मैदान प्रारम्भ होते हैं । इसका परिणाम यह होता है कि हिमालय के समीप- वर्ती मैदानों का बहुत सा भाग 'नम' और दलदल हो जाता है। इसे तराई कहते हैं । 'तराई' के मैदानों में बहुत नमी रहती है, घने जंगल खड़े हैं । यहाँ का जलवायु अधिक नमो हाने के कारण मनुष्य निवास के उपयुक्त नहीं है। ॥
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