३७२ आर्थिक भूगोल अफगानिस्तान से जो कारवां द्वारा व्यापार होता है आरहा है वह इन्हीं दरों का प्रसाद है । इन दरों से केवल व्यापारी ही पाते रहे हों यही बात नहीं है भारत पर बाहर से जितने आक्रमण हुए हैं वह इन्हीं दरों के द्वारा हुए हैं। यदि भविष्य में हिमालय के प्रदेश में जलविद्युत् की उन्नति हो जिसके लिए वहाँ बहुत सुविधा है तो हिमालय से वनों में मिलने वाले कच्चे माल से हिमालय प्रदेश में उद्योग-धंधों की स्थापना हो सकती है। हिमालय से यह सब लाभ होते हुए भी यह तो कहना होगा कि वह उत्तर में एक महान् अभेद्य दीवार की भांति खड़ा है और उसने भारत का चीन इत्यादि एशियाई राष्ट्रों से व्यापारी सम्बंध स्थापित होने में रुकावट डाली है। हिमालय के दक्षिण में सिंघ और गंगा का उपजाऊ मैदान है। यह संसार के अत्यन्त उपजाऊ प्रदेशों में से है । इसकी गंगा और सिंध भूमि अत्यन्त उपजाऊ है । इस कारण यह बहुत घना के मैदान आवाद है । यह वह प्रदेश है जहाँ भारतवर्ष की प्राचीन सभ्यता का जन्म हुआ था। इसमें सिंध का अधिकांश भाग, उत्तरी राजपूताना, पंजाब, संयुक्त प्रान्त, बिहार, बंगाल, तथा आधा आसाम सम्मिलित है । यह मैदान पश्चिम में अधिक चौड़ा और पूर्व में कम चौड़ा है। इसका क्षेत्रफल ५ लाख वर्ग मील है। इस विशाल मैदान में कहीं पत्थर का नाम तक नहीं है। इस मैदान में खोदने पर १००० फीट गहराई तक कहीं चट्टानों का चिन्ह दृष्टिगोचर नहीं हुआ । राजपूताने का विस्तार ४०० मील लम्बा और १०० मील चौड़ा है। अरावली पहाड़ ने इसे दो भागों में बांट दिया है। दक्षिण पूर्वी भाग गंगा का बेसिन है और उत्तर-पश्चिमी भाग सिंध का बेसिन है । वास्तव में यही भाग मरुभूमि है । यह मरुभूमि हवा द्वारा उड़ा कर लाई बालू से बना है। उत्तर में भाभर तथा तराई को छोड़ कर शेष मैदान में गंगा और सिंघ को सहायक नदियों का जाल बिछा हुआ है और इनके द्वारा लाई हुई मिट्टी से ही यह मैदान बने हैं। उत्तर में जहाँ हिमालय की श्रोणियाँ आरम्भ होती हैं वहां पर असंख्य नदियों ने कंकड और पत्थर के ढेर इकट्ठा कर दिए हैं। यह पथरीले ढाल हिमालय पहाड़ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पाये जाते हैं। इन्हें भाभर कहते हैं। इस "भाभर" प्रदेश में चूना अधिक होने के कारण छोटी छोटी नदियों और नालों का पानी इस प्रदेश में सूख जाता है। केवल बड़ी बड़ी नदियों का पानी ऊपर बहता है। अतएव इस प्रदेश में खेती नहीं हो
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