भारतवर्ष की प्रकृति ३७५ नदियों के अतिरिक्त प्रायद्वीप में ऐसी भी नदियाँ हैं जो गंगा और यमुना में जाकर मिलती हैं।. भारतवर्ष के दक्षिणी पर्वतों में नीलगिरि का पहाड़ मुख्य है। इसी पर्वत पर उटकमंड स्थित है । पालघाट नदी के दक्षिण में नीलगिरि पर्वत के समान ही अनामलाई का पठार भी है। इनके अतिरिक्त और भी छोटे छोटे पठार हैं जिनके किनारे के पास की ममि बहुत नीची है। परन्तु पहाड़ी को बने अभी बहुत समय नहीं हुआ इस कारण नदियाँ अब भी अपनी घाटियाँ बना रही हैं। दक्षिण पठार चारों ओर मैदानों से घिरा है। उत्तर में गंगा और सिन्ध का मैदान, पूर्व में गंगा का मैदान, तथा पूर्व का तटीय मैदान तटीय मैदान है। दक्षिण में भी पूर्व का तटीय मैदान, तथा पश्चिम में पश्चिम का तटीय मैदान है। पूर्वी घाट और बगाल की खाड़ी के बीच में कारोमंडल का चौड़ा विस्तृत उपजाऊ समतल तटीय मैदान है। पश्चिमी घाट और अरब सागर का तटीय मैदान तंग है और मालाबार के नाम से प्रसिद्ध है। भारतवर्ष में मुख्य चार प्रकार की भूमि हैं-(१) लाल भूमि, (२) काली-कपास की भूमि जिसे रेगर भूमि भी कहते हैं भूमि मिट्टी (३) गंगवार भमि ( Alluvial Soil ) यह मिट्टी बहती हुई नदी की धार के साथ आकर जम जाती है। (४) लैटोराइट ( Latorite ) भूमि। लाल जमीन ( Crystalline Soil ) विंध्या के नीचे सारे प्रायद्वीप में पाई जाती है। यह ज़मीन सारे मद्रास प्रांत में, मैसूर राज्य में और बम्बई के दक्षिणोत्तर में पाई जाती है । यह मिट्टी हैदराबाद के पूर्वी हिस्से में भी फैली है तथा मध्यप्रदेश से उड़ीसा प्रान्त, छोटा नागपूर और बंगाल के दक्षिण तक फैली हुई है। यह मिट्टी बुंदेलखड और राजपूताने को कुछ रियासतों में भी पाई जाती है। इस मिट्टी का रंग गाढ़ा लाल, भूरा या काला होता है। इस जमीन की गहराई और उपजाऊपन भिन्न भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न है और इसका तत्व भी भिन्न भिन्न प्रकार का होता है। साधारणत: ऊँची जगहों में यह कम उपजाऊ, कम गहरी, पथरीली और हलके लाल रंग की होती है। जहाँ इस ज़मीन की गहराई अधिक होती है वहां यदि पानी यथेष्ट परिमाण में मिल जाये तो खूब अच्छी फसल उत्पन्न हो सकती है। इस भमि
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