पृथ्वी के धरातल की बनावट और मिट्टी हैं, चट्टानों को तोड़कर. और पत्थरों को पीस कर मिट्टी को नीचे मैदानों पर बिछा देती हैं। हवा एक स्थान से मिट्टी को उड़ाकर दूसरे स्थान पर ले जाती है। बर्फ, पैधेि तथा तेज धूप भी धीरे धीरे धरातल को तोड़ते रहते हैं। जब चट्टानों के बीच में ठंडक के कारण बर्फ जम जाती है तो वह चट्टानों को तोड़ देती है । ग्लेसियर ( Glaciers ) चट्टानों को तोड़ कर उन्हें घिस देता है और जहाँ वह पिघलता है वहाँ उस मिट्टी को बिछा देता है। हवा और पानी ने धीरे धीरे घरातल को बहुत कुछ बदल दिया है। गंगा और सिंघ के मैदान इन दो नदियों के द्वारा लाई हुई मिट्टी से बने हैं। उत्तरी चीन में जो उपजाऊ मैदान हैं उनकी मिट्टी हवा द्वारा उड़ाकर लाई गई है। इसी प्रकार उत्तरीय योरोप तथा उत्तरीय अमेरिका के मैदान ग्लेशियरों (Glaciers) के द्वारा बने हैं। ____ यदि पृथ्वी के धरातल की बनावट का अध्ययन करें तो हमें ज्ञात होगा कि पृथ्वी पर दो पर्वत मालायें फैली हुई हैं। एक पूर्वीय गोलाद्ध (Eastern Hemisphere ) तथा दूसरी पश्चिमी गोलाई .( Western Hemisphere ) में हैं। पूर्वीय गोलार्द्ध की पर्वत माला पामीर के पठार से चार शाखों में बँट गई है । पहली शाखा अफगानिस्तान, फारस, टर्की होती हुई दक्षिण योरोप में फैल गई है। दूसरी शाखा (जो कम ऊँची और टूटी हुई है ) अरब और अबसीनिया में होती हुई दक्षिण अफ्रीका में चली गई . है, तीसरी मलाया प्रायद्वीप ( Peninsula ) तथा द्वीप समूह में होती हुई प्रास्ट्रलिया में चली गई है। और चौथी चीन तथा सायबेरिया में होती हुई बेरिंग जलसंयोजक तक चली गई है। पश्चिमी गोलार्द्ध की पर्वत माला अलास्को से हार्न अन्तरीप ( Cape Horn ) तक चली गई है। इन पर्वत मालाओं के अतिरिक्त कुछ फुटकर बिखरे हुये पहाड़ भी हैं। जैसे उत्तर-पश्चिम योरोप के पहाड़, अथवा उत्तर अमेरिका के अपलेशियन (Appulachians ) तथा ब्राजील के पहाड़। किन्तु ये पहाड़ न तो बहुत ऊँचे ही हैं और न बहुत क्षेत्रफल में ही फैले हुये हैं। - इन पर्वत मालाओं से जुड़े हुये पठार तथा मैदान हैं। नदियाँ इन्हीं पहाड़ों से निकल कर मैदानों में बहती हुई समुद्र में गिरती हैं । कहीं कहीं पानी के एक स्थान पर इकहाँ हो जाने से झोलें बन जाती हैं। - मैंदानों तथा नदियों की घाटियों में मिट्टी उपजाऊ, जल की बहुतायत तपा गमनागमन की सुविधा होने की वजह से खेती बारी और उद्योग-धंधों की खूब उन्नति होती है और आबादी घनी होती है। परन्तु पर्वतीय प्रदेश में मनुष्य को बहुत कठिनाइयाँ उठानी पड़ती हैं। वहाँ श्रौद्योगिक उन्नति केवल
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