बार्षिक भूगोल के लिए चंदन की लकड़ी विशेष महत्त्वपूर्ण है यह अधिकतर मैसूर राज्य में उत्पन्न होती है। भारतवर्ष में वन सम्पत्ति यथेष्ट है परन्तु उसका पूरा पूरा उपयोग श्रमी तक नहीं हो पाया है। इसका मुख्य कारण यह है कि हिमालय के वन बहुत ऊँचाई पर हैं और मार्गों की सुविधा के न होने के कारण उनका. उपयोग नहीं हो सकता । योरोप तथा अमेरिका के वनों में से लकड़ी लाने के लिए बर्फ सुविधाजनक मार्ग बना देता है, जाड़ों में बर्फ जम जाता है और लकड़ी को काट कर इकट्ठा कर लिया जाता है। यह लकड़ियों के लडे निकने बर्फीले मार्ग से खींच कर नदी पर लाये जाते हैं और नदी के पिघलने पर अनायास ही वे निर्दिष्ट स्थान पर पहुँच जाते हैं। प्रकृति ने यह सुविधा भारतवर्ष को प्रदान नहीं की है, इस कारण भारतवर्ष में मार्गों की असुविधा विशेष रूप से सामने आती है। उत्तर भारतवर्ष में अधिकतर लकड़ी नदियों में बहाकर नीचे लाई जाती है। कहीं कहीं विशेषकर मैसूर और अंडमन में हाथी और भैंसे का भी लकड़ी उठाने में उपयोग होता है । भारतवर्ष में केवल अासाम के ग्वालपारा डिवीज़न तथा पंजाब के छंगा मंगा के वनों में ट्राम गाड़ी का लकड़ी लाने में उपयोग होता है। हिमालय के कतिपय भागों में रस्सा मार्ग ( Rope Ways) का भी उपयोग होता है। वनों के बहुत ऊँचे पर होने, तथा मार्गों की सुविधा न होने के साथ साथ भारतवर्ष के जलवायु के कारण यहाँ न तो मकानों के लिए ही अधिक लकड़ी का उपयोग होता है और न फर्नीचर की ही अधिक मांग है, इस कारण यहाँ लकड़ी की माँग अन्य देशों की तुलना में कम है। इसके अतिरिक्त अभी तक हम लोगों को भारतीय वनों में पाई जाने वाली लकड़ी का प्रौद्योगिक उपयोग भी नहीं मालूम हो सका है , फारेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट इस ओर कार्य कर रही है। यह फारेस्टरिसर्च इंस्टिट्यूट की खोज का परिणाम है कि बांस से कागज़ उत्पन्न किया जाने लगा है। ऊपर लिखे हुए कारणों से भारतीय वन-सम्पत्ति का पूरा पूरा उपयोग नहीं हो सका है। भारत सरकार ने वनों की रक्षा तथा उनके प्रबंध की दृष्टि से भारतीय वनों को तीन श्रेणी में बांट दिया है (.१) रक्षित वन (Reserved forests ) इन वनों में पशुओं को बिलकुल चरने नहीं दिया जाता। यह जलवायु तथा अन्य प्राकृतिक कारणों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समझे जाते हैं। (२) संरक्षित वन ( Protected forests ) में पशुओं को चराने पर
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