आर्थिक भूगोल से निकलता है। मरिया की खानों से प्रतिवर्ष एक करोड़ टन से कुछ अधिक कोयला निकलता है। डाक्टर फारमर के मत से झरिया की खानों का जीवन ४१ वर्ष है। उनका मत है कि यदि खानों को खोदने के ढंग में उन्नति हो, बहुत सा कोयला खानों में ही नष्ट न हो जाय, और खानों में आग लगना रोका जा सके तो अच्छा कोयला १०० वर्ष तक चल सकता है। विशेषज्ञों का मत है कि साधारण कोयला भारतवर्ष में .३५० वर्ष तक चलेगा यद्यपि कोक बनाने योग्य कोयला भारतवर्ष में कम ही है. परन्तु फिर भी उसका उपयोग किफायत से नहीं हो रहा है। होना तो यह चाहिये था कि वह कोयला जिसका हार्ड कोक ( Hard coke ) बन सके वह केवल लोहे और स्टील के बन्धे में ही काम में लाया जाये। क्योंकि स्टील के षधे के लिए हार्ड कोक ( Hard coke ) आवश्यक है। परन्तु भारतवर्ष में यह अच्छा कोयला रेलवे तथा अन्य धन्धों में भी काम में लाया जाता है जिनका काम पटिया कोयने से भी चल सकता है। भारतवर्ष का अधिकांश कोयला तो देश के अन्दर ही खप जाता है। घोड़ा सा कोयला सीलौन तथा पूर्व के देशों को जाता है। कोयले की समस्त उत्पत्ति का ३२ प्रतिशत रेलों में, २४.५ प्रतिशत लोहे के कारखानों में, १६ प्रतिशत उग धन्धों में तथा १६ प्रतिशत घरों और छोटे छोटे धंधों में खर्च होता है। कुछ दिनों से भारतवर्ष में घरों में जलाने के लिए साफ्ट कोक (Soft coke ) का प्रचार बढ़ रहा है। (Soft coke ) घटिया कोयले से तैयार होता है। भारतवर्ष में लकड़ी की कमी है। इस कारण गो. बर जला दिया जाता है और खेतों को यथेष्ट खाद नहीं मिलती। यदि साफ्ट कोक का अधिक उपयोग बढ़ जाये तो खाद के लिए गोबर बच सकता है । ब्रिटिश भारत में १९३८ में २५६ लाख टन कोयला निकाला गया । देशी राज्यों में बहुत कम कोयला निकलता है। १९३७ में देशी राज्यों में २७ लाख टन कोयला निकला गया । इसी वर्ष अर्थात् १९३८ में पृथ्वी. के सब देशों में १२,२५० लाख टन कोयला उत्पन्न हुआ। घटिया कोयले से कोयले की गौण वस्तुयें (By Products) तैयार नहीं हो सकती । भारतवर्ष में अभी जो कुछ गौण वस्तुयें तैयार की जा रही हैं वे उसी कोयले से निकलती हैं जो कि हार्ड कोक ( Hard coke) बनाने के उपयुक्त होता है। यह गौण वस्तुयें कोलतार और अमोनिया सलफेट हैं। अमोनिया सलमेट अधिकतर जावा को भेजा जाता है। मारतवर्ष की कोयले की खाने देश के एक कोने में स्थित हैं। अन्य देशों .
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