शक्ति के श्रोत जनक गति से मिले और कारखाने स्थापित होते जा रहे हैं। कोयम्बटूर में कपड़े की बहुत सी मिलें स्थापित हो गई है। थोड़े ही समय में कोयम्बटूर भी कपड़े की मिलों का एक मुख्य केन्द्र बन जायेगा। 'पायकरां के अतिरिक्त मैटूर (Mettur) पापनासम, पालिनी पहाड़ियाँ, तथा पैरियर शक्ति गृहों ( Power-houses ) से भी बिजली उत्पन्न की जाती है। इन सभी स्थानों पर बाँध बनाकर जल को रोक दिया गया है और उसका उपयोग बिजली उत्पन्न करने में किया जाता है । मैटूर के समीप कपड़े तथा अन्य कारवाने इस. शीघ्रता से स्थापित हो गए कि मैटूर से उत्पन्न होने वाली बिजली यथेष्ट नहीं पी अतएव मदरास मरकार ने, पायकारा को बढ़ा कर उसकी बिजली को.मैटूर के काम में लाने का. निश्चय किया। मदरास सरकार का विचार है कि पायकारा, मैटूर तथा पापनासम की लाइनों को जोड़ दिया जाय जिससे कि बिजली की बड़ी लाइन ( Electric Grid) बन जाये । दक्षिण मदरास में इन शक्ति-गृहों की बिजली ले जाने वाली लाइनों का एक जान्न सा-बिछा है । मदरास, चिगलपेटें, पाडीचेरी, विलुपुरम, वैलोर रानीपेट, सेलम, त्रिपुर, डिंडीगुल मदूरा, साटूर, तूतीकोरन तिनेवली, कोचीन, त्रिचूर, कोयम्बटूर, कालीकट तथा अन्य बहुत से नगरों और कस्बों में इन शक्ति-गृहों में उत्पन्न हुई बिजली पहुँचती है । इन शक्ति-गृहों के कारण थोड़े समय में ही दक्षिण भारत में उद्योग धघों की पाशातीत उन्नति भारतवर्ष में सबसे पहले जलविद्युत् उत्पन्न करने का श्रेय मैसूर राज्य को है । सन १६:२ में कावेरी नदी पर शिवसामुंदरम् मैसूर में जल- जल-प्रपात के समीप शक्ति-गृह ( Power-house ) विद्युत् स्थापित किया गया। शिवसमुंदरम् की बिजलो ६२ मील दूर कोलार सोने की खानों में काम आती है। यहाँ को बिजली मैसूर तपा बंगलौर में भी कारखानों तथा रोशनी के उपयोग "मैं पाती है। शिवसामुंदरम् शक्ति-गृह. से केवल २५००० घोड़ों की शक्ति उत्पन्न की जा सकती थी । किन्तु बिजली की मांग अधिक होने के कारण कृष्ण राजा सागर नामक बांध बना कर कावेरी के जल को रोक लिया गया है और इस प्रकार शिवसामुंदरम् शक्ति-गृह से अधिक शक्ति उत्पन्न की जा रही है। मैसूर में दो योजनायें बन कर तैयार हुई हैं। पहली योजना के अनुसार कावेरी की सहायक शिम्सा नदी के जल से विद्युत् उत्पन्न की जारही है। दूसरी योजना मेकाढाटू के नाम से प्रसिद्ध है। शिवसामुंदरम् के दक्षिण मा० ५०-५५
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