i आर्थिक भूगोल तह अधिक मोटी है वहा ट्यूब-वैन ( Tube well ) बनाने से बहुत पानी मिल सकता है । किन्तु ट्यूबवैल के बनाने में व्यय अधिक होता है तथा उसके पानी को निकालने के लिए यांत्रिक शक्ति ( Machine Power .) की- आवश्यकता पड़ती है। कुयें की उपयोगिता पृथ्वी के अन्दर बहने वाले जल पर निर्भर रहती हैं। पृथ्वी के अन्दर बहने वाला जल, वर्षा का जलं, तराई में जो जलं पृथ्वी द्वारा सोख लिया जाता है. और नहरों तथा नदियों के जल का वह भाग जिसे पृथ्वी सोख लेती है निर्भर रहता है। यदि वर्षा अधिक हो तो अन्दर पानी अधिक होगा। किन्तु पृथ्वी उसी समय जन्म अधिक 'सोखती है जबकि जल धीरे धीरे बहता हो । यदि पृथ्वी में जम बहुत गहराई पर मिलता है तो कुंओं की सिंचाई के लिए उपयोगिता कम होती है क्योंकि, सिंचाई में व्यय अधिक होता है। भारतवर्ष में बहुत से भागों में पानी बहुत गहराई पर मिलता है। कुछ स्थानों पर.कुत्रों का जल खारी होता है। खारी जल भी सिंचाई के काम में नहीं आ सकता । कहीं कहीं वर्षों न होने से अपवा कम होने से कुये सूख जाते हैं । ऐसे प्रदेशों में जब पानी की बहुत आवश्यकता होती है तभी कुत्रों में पानी नहीं होता । निम्नलिखित प्रदेश मुख्यतः कुत्रों पर सिंचाई के लिए निर्भर हैं:- संयुक्तप्रान्त विशेषकर पूर्वी भाग, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल:| काली कपास वाली मिट्टी का प्रदेश, तथा मदरास और बम्बई प्रान्तों के दक्षिणी जिले । इससे यह न समझना चाहिए कि अन्य-भागों में कुत्रों से सिंचाई नहीं होती। राजस्ताना के दक्षिणी भाग, पंजाब, मध्य भारत तथा मध्यप्रान्त भी बहुत कुछ कुत्रों पर निर्भर है । कुत्रों के द्वारा भारतवर्ष में कुल सींची जाने वाली भूमि की एक चौथाई भूमि पर सिंचाई होती है । हिमालय की तराई, आसाम तथा पश्चिमीय समुद्रतट में कुयें बहुत कम हैं। प्रायः सिंचाई के लिए उनका उपयोग नहीं होता। भारतवर्ष में सबसे अधिक कुयें संयुक्तप्रान्त में हैं। प्रान्तों में कुओं की संख्या क्षेत्रफल (एकड़ों में) कुओं की संख्या मदरास १,३०८,००० बम्बई ७६८,००० २६०,००० संयुक्तप्रान्त ५,५५४,००० १,१३५,००० पंजाब ४,७४६,००० ३४०,००० प्रान्त
पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/४६५
दिखावट