सिंचाई
1 .. मध्यप्रान्त १३४,००० १२६,००० सीमाप्रान्त १४,००० ४०,००० १६,००० भारत में कुत्रों के द्वारा लगभग ३ करोड़ एकड़ भूमि पर सिंचाई होती है। कुत्रों में से पानी निकालने के लिए मनुष्य पशु और आयल-ऐंजिन तथा बिजली सभी का उपयोग होता है। ऐसा कोई प्रान्त देश में नहीं है जहाँ कुओं की संख्या को बढ़ाया. नहीं. जा सकता। किन्तु सरकार का ध्यान अभी इस ओर नहीं गया है। यदि. सरकार किसानों को आर्थिक सहायता दे तो कुओं की संख्या में विशेष वृद्धि हो सकती है। कुछ वर्षों से संयुक्तपान्त के कतिपय जिलों में सरकार ने. ट्युच-वैल खुदवाये हैं जो गंगा नहर के पानी से उत्पन्न हुई संयुक्तप्रान्त के बिजली से चलते हैं। अभी बदायूँ, मुजफ्फरनगर, ट्य व-वैल . बिजनौर, मेरठ, बुलन्दशहर, अलीगढ़ और मुरादाबाद: जिलों में ही ट्यूब-वैल खोदे गए हैं। एक ट्यूब-वैल, के तैयार करने में लगभग दस हजार रुपया व्यय होता है.और वह एक हजार एकड़ को सींच सकता है। संयुक्तपान्त में लगभग डेढ़ करोड़ रुपये व्यय करके लंगमग १५०० ट्यूब बेल खोदे गए हैं और उनसे 'इन जिलों में 'सिंचाई होती है । जैसे जैसे अन्य जिलों में बिजली पहुँचती जायेगी वैसे ही वैसे वहाँ भी -वैल खोदे जायेंगे । भविष्य में संयुक्तप्रान्त में ट्यूब-वैल सिंचाई का एक.महत्वपूर्ण साधन बन जायेगा। 'ट्यब-वैल की सिंचाई के कुछ लाभ हैं जो कि नहरों द्वारा सिंचाई करने से प्राप्त नहीं होते । (१) ट्यूब वैल को एक बार बना देने के उपरान्त उसकी देख भान तथा प्रबंध में बहुत कम व्यय होता है। इस कारण पानी सस्ते मूल्य पर दिया जा सकता है। (२.) कुओं का पानी नहरों के पानी की अपेक्षा फसलों के लिए अधिक लाभदायक है । (३) प्रत्येक ट्यूब-वैल पर एक आपरेटर ( कर्मचारी ) रहता है जो किसान के मांगने पर कुयें को चलाकर पानी किसान को दे देता है । अर्थात् किसान को पानी की प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती । जब उसे आवश्यकता होती है तभी उसे ट्य ब-वैल से', पानी मिल जाता है । नहरों के जल के लिए कभी कभी बहुत लम्बी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। ट्य ब-वैल पर मीटर लगा हुआ रहता है। अतएव किसान जितना पानी लेता है उतना नाप लिया जाता है और उसी के अनुसार- ट्यूब .