-- चार्थिक भूगोल बोया जाता । जाड़ों में वर्षा हो जाने से गेहूँ का पौधा खूब बढ़ता है। किन्तु भारत में जाड़ों में वर्षा कम होती है इस कारण गेहूँ की पैदावार वहीं अधिक होती है जहाँ कि सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। फरवरी के अन्त में गर्मी पड़ना प्रारम्भ हो जाती है जिससे फसल पकने में सुविधा होती है। किन्तु भारतवर्ष में जलवायु की दृष्टि से एक कमी है जिस : कारण यहाँ का गेहूँ बहुत बढ़िया नहीं होता । कारण यह है कि फ़रवरी के अन्त में गर्मी पड़ना प्रारम्भ होती है और एक साथ गरमी अधिक बढ़ जाती है। तापक्रम धीरे धीरे न बढ़ कर एक साथ बढ़ जाता है। इस कारण गेहूँ ठीक तरह. सेन पक कर झुलस जाता है । यही नहीं मार्च और एप्रिल में उत्तर भारत में गर्म शुष्क तेज़ हवा चलती है जिससे गेहूँ के पौधे को हानि पहुँचती और कभी कभी ओले और तूफान भी आते हैं जिससे फसल को बहुत हानि पहुँच जाती है। भारतवर्ष में प्रति एकड़ उपज बहुत कम होती है। प्रति एकड़ यहाँ ६६० पौंड गेहूँ उत्पन्न होता है। ब्रिटेन, बैलजियम, तथा डेनमार्क में एक एकड़ में यहाँ से तीन गुना गेहूँ उत्पन्न होता है। भारतवर्ष में प्रति एकड़ उपज संयुक्तराज्य अमेरिका कनाडा तथा अन्य नये देशों से भी कम है । संसार में गेहूँ की उत्पत्ति की दृष्टि से भारतवर्ष का चौथा स्थान है। किन्तु भारत- वर्ष का अधिकांश गेहूँ यहीं खप जाता है। विदेशों को बहुत कम गेहूँ भेजा जाता है। हाँ अन्तर प्रान्तीय व्यापार अवश्य होता है । पंजाब, सिंघ, संयुक्तप्रान्त तथा मध्यप्रान्त में गेहूँ बंगाल, राजपूताना तथा बम्बई को जाता है । बम्बई और राजपूताने में वहां की आवश्यकता को दृष्टि से गेहूँ कम उत्पन्न होता है । बंगाल में कलकत्ते में गेहूं को बहुत मांग रहती है क्योंकि वहाँ उत्तर भारत राजपूताने के गेहूँ खाने वाले लोग बहुत रहते हैं। विदेशों को जो थोड़ा बहुत गेहूँ भेजा जाता है वह करांची से जाता है और विशेषतः ब्रिटेन को जाता है । यहाँ से थोड़ा सा गेहूँ का आटा अरेबिया, पूर्वी अफ्रीका तथा स्टेट सैटिलमेंट को जाता है। भारत के प्रान्तों में गेहूँ की उत्पत्ति (१९३६ में) प्रान्त क्षेत्रफल उत्पत्ति १००० एकड़ों में) (१००० टनों में) ११,४७१ ४२०० संयुक्त प्रान्त ७,८०० २७७७ .. पजाब
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