, खेती. ४८७ गाय-बैल किसी भी देश में नहीं हैं। पृथ्वी के एक तिहाई गाय-बैल इस देश में हैं ( सब देशों के गाय बैलों की संख्या ६६ करोड़ है)। यद्यपि भारतवर्ष में गाय को पूज्य मानते हैं और गाय तथा वैल दूध और खेती के लिए आवश्यक हैं फिर भी इनकी नस्ल इतनी बिगड़ गई है जिसका कुछ ठिकाना नहीं । कुछ नस्लों को छोड़कर शेष गाय और बैल इतने निर्वल और खराब हैं कि वे अधिक उपयोगी नहीं रहे हैं। साधारण भारतीय गाय दिन में सेर भर दूध देती है जबकि डेनमार्क, में साधारण गाय १८ सेर से कम दूध नहीं देती । १६ सेर प्रति दिन से कम दूध देने वाली गाय को डैनमार्क में पालना लाभदायक नहीं समझा जाता और यह मांस के कारखानों को बेच दी जाती है । साधारण भारतीय बैल भी इतना छोटा और निर्बल होता है कि यह भारी इल तथा अच्छे यन्त्रों को खींच ही नहीं सकते । यद्यपि देश में गौवंश का अत्यधिक हास हो गया है किन्तु फिर भी कुछ नस्लें अब भी बची हुई हैं जो अच्छी हैं। मैसूर का अमृतमाल, धन्नी पंजाब और सीमाप्रान्त में, गिर काठियावाड़ तथा पश्चिमी राजपूताने में, हरियाना और शाहीवाल-पंजाब में, काकरेज-सिंघ का, और आंगलो मदरास का देश की अच्छी नस्ले हैं। हिन्दोस्तान में पशुओं की नस्ल के बिगड़ने के मुख्य तीन कारण हैं (१) चारे की कमी, (२) अच्छे साड़ों कमी और रद्दी साड़ों से नस्ल पैदा कराना (३) पशुओं की चिकित्सा का ठीक प्रबंध न होना, देश में पशुओं की महामारी का प्रकोप । हिन्दोस्तान में गाय की नस्ल इतनी बिगड़ गई है कि वह दूध देने योग्य नहीं रही । भैंस ने उसका स्थान ले लिया है। भैंस गाय खेती के लिए बैल उत्पन्न करने के लिए ही पाली जाती है । भैंस के दूध में घी अधिक होता है किन्तु भैंसे का खेती में उपयोग नहीं होता। इस कारण उसकी ओर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता और न कोई उसे अच्छी तरह खिलाता ही है। हाँ भैंसे का उपयोग बोझा ढोने में अवश्य होता है। भारतवर्ष में ६ करोड़ के लगभग भैंस और मैंसे हैं। बकरी गरीबों को गाय है। वह हर एक चीज़ खा लेती है इस कारण उसको पालने में खर्च बहुत कम होता है। जितनी बकरी, चरागाह की भूमि पर एक गाय रह सकती है उस पर बारह बकरियाँ निर्वाह कर सकती हैं। बकरों का मांस ,
पृष्ठ:आर्थिक भूगोल.djvu/४९८
दिखावट