बार्षिक भूगोल अमेरिकन कपास का फूल अधिक लम्बा होता है किन्तु किसान इसमें मी देसी फपास मिला देता है।. ४० नम्बर से अधिक बारीक सूत कातने के लिए भारतवर्ष में कपास उत्पन्न ही नहीं होती। अहमदाबाद और बम्बई में जो ४० नन्वर से भी अधिक बारीक सूत काता जाता है वह संयुक्तराज्य अमेरिका तथा ईजिप्ट की कगस से तैयार किया जाता है। पिछले वर्षों में भारतीय मिलों ने अपनी उत्पत्ति को बेहदं बढ़ा लिया है और जितना कपड़ा तपा.सूत भारतीय मिले देश में तैयार करती हैं उसको तुलना में विदेशों से प्रायाः हुआ..कपड़ा तथा सूत नहीं के बराबर है. फिर-भारतवर्ष में केवल मिले ही कपड़ा तैयार नहीं करती... हाथ : क: से भी देश की खपत का एक चौपाई कपड़ा; तैयार होता है। यदि देश की मिलों तथा: हाप -कों से तैयार होने वाले कपड़े को-लें तो विदेशों से आने वाला कपड़ा उनकी तुलना में १५% से., अधिक नहीं हैं । १६३६ के ये.रोपोय, महायुद्ध के फलस्वरूप भारतीय व्यवसाय को और भी. प्रोत्साहन मिलेगा और भविष्य में भारतवर्षः वत्र की दृष्टि से यदि स्वावलम्बी हो जाये तो आश्चर्य न होगा। किन्तु हमारे वन-व्यवसाय की भावी उन्नति इस बात पर निर्भर रहेगी कि भारतवर्ष में बढ़िया कपास उत्पन्न की जा सकेगी या नहीं।-वस्त्रं-व्यवसाय के लिये इस बात की नितान्त आवश्य- कता है कि यहाँ बढ़िया कपास उत्पन्न की जाय । इंडियन काटन कमेटी इस दिशा में प्रयत्नशील है भारतवर्ष से थोड़ा सा कपड़ाप्रतिवर्ष दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका, इराक, ईरान, और लंका को जाता है.। जो कुछ भी कपडा विदेशों को जाता है वह बम्बई से ही जाता है। बात यह है कि बम्बई की मिनों को, अहमदाबाद, नागपूर, कोयमबटूर तथा कानपर इत्यादि भीतरी केन्द्रों से प्रतिद्वन्दिता करने में कठिनाई होती हैं। भीतरी केन्द्रों को बहुत सी सुविधायें प्राप्त हैं जो कि बम्बई को प्राप्त नहीं है। अतएव 'बम्बई की मिलों ने दो बातों की तरफ ध्यान देना शुरू किया है। एक तो बढ़िया और बारीक कपड़ा बनाने दूसरे समीपवर्ती एशियाई देशों में कपड़े को बेंचने का प्रयत्न किया जा रहा है। भारतीय सूती वन-व्यवसाय की विशेषता यह है कि इस धंधे पर देशी पूंजीपतियों का प्रभुत्व है । इस धंधे में अधिकांश पूंजी भारतीयों की है और प्रबंध भी.भारतीयों के हाथ में है। . भारत में सूती मिलों का वितरणः .. " 'बम्बई . • अहमदाबाद 'शोलापूर. 13 . । ..
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