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आर्थिक भूगोल

प्राधिक भूगोल: के लिये ही सुरक्षित कर दिया जाय । यदि भारत का तटीय व्यापार भारतीय जहाजों के लिए सुरक्षित कर दिया जाय और उन्हें विदेशी जहाज़ी कंपनियों की प्रतिद्वन्दता का सामना न करना पड़े तो थोड़े ही समा में भारत का जहाजी कारबार फिर चमक उठे और देश का वैदेशिक व्यापार भी भारतीय जहाज़ों के द्वारा होने मगे । ऐसा होने से बहुत बड़ी संख्या में भारतीयों को रोजगार मिल मकता है। इस समय भारतीय जहाज तटीय व्यारार का केवल २१ प्रतिशत और समुद्री व्यापार का केवल २ प्रतिशत व्यापार पाते हैं। विदेशी कंपनियाँ सारे व्यापार को हथियाये हुये हैं। भविष्य में देशी कंपनियों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। यद्यपि भारत की स्थल सीमा बहुन विग्तृत है ( ६००० मील) किन्तु व्यापार बहुत कम होता है । सीमा पर सपन बन और कारवाँ के मार्ग , ऊँचे पहाड़ों के कारण मार्गों की सुविधा नहीं हो (Caraven Routes) सकी इस कारण व्यापार बहुत कम होता है। उत्तरी सं मा पर कोई रेलवे लाइन नहीं है । जो कुछ व्यापार होता है वह याकों, खच्चरों, ऊँटों, घोड़ों के द्वारा होता है। यह कारचा मार्ग भारत को ईरान, अफगानिस्तान, मध्य एशिया, तिब्बत और नेपाल से मिक्षाता है। इन देशों से भारत को मिलाने वाले पाँच मुख्य मार्ग हैं:- (१) चमन (बलूचिस्तान में ) से खोजाक दरें में होकर कंदहार और हिरात को। (२) केटा से जाहिदान तक (जो ईरान और बलूचिस्तान सीमा पर है ) रेल द्वारा ( यन डब्लू पार ) और वहां से कारवां द्वारा ईरान को । युद्धकाल में युद्ध सामिग्री को शीघ्र ही पहुँचाने के उद्देश्य से जाहिदान से तेहरान तक मोटर के लायक पक्की सड़क बन गई है। ( ३ ) पेशावर से बैंबर के दरें में से होकर जलालाबाद तक । (४) पंजाब में "अटक' से चित्राल और हिन्दूकुश होकर काशगर (सिनकियांग में ) तक। ( ५ ) देरा इस्माइल खां से गोमन से दरें (७५०० फिट) में से होकर कलात और कंदहोर तक । एक दूसरा भी रास्ता है जो 'लैह' (काश्मीर में ) से काश्मीर और तिव्वत तक माता है। यह अत्यन्त कठिन मार्ग है और इस मार्ग में कराकोरम का दर्रा ( १८००० फीर ) भी पड़ता है।