आर्थिक भूगोल , भाप हवा में रह सकेगी । जब हवा में उसकी वाष्प धारण शक्ति के . अनुसार पी भाप होती है तो उसे वाष्प से भरी हई (Saturated) कहते हैं। जल के भाप बनने की क्रिया को वाष्पी भवन क्रिया (Evapo- ration ) कहते हैं और वाष्प के जल में परिवर्तित होने की क्रिया को द्रवीमवन क्रिया ( Condensation ) कहते हैं। धरातल से गर्म और आर्द्र ( Humid ) वायु उत्पन्न होकर फैलती है और जब वह किसी कारण से ठंडी होने लगती है उस समय वायु की भाप जल के छोटे-छोटे जल-कणों में द्रवीभूत होने लगती है। यही हमें बादलों के रूप में दिखलाई देती है। छोटे-छोटे जल-कण बड़े पानी के बूंद बन कर बरसते हैं। यह बिन्दु कमी-कभी घरातल पर पहुँचने के पहिले ही वीच में गर्म हवा होने के कारण फिर भाप बन जाते हैं, तो केवल बादल दिखलाई पड़ते हैं किन्तु वर्षा नहीं होती । जब वायु का ऊपरी भाग बहुत ठंडा होता है तब माप जल के स्थान पर छोटे-छोटे बर्फ के टुकड़ों का रूप धारण कर लेती है और ओलों की वर्षा होती है । अत्यन्त ठंडे देशों में जलवाष्प रुई के गाले के समान कोमल बर्फ (Snow ) बन जाती है। यह तो ऊपर ही कहा जा चुका है कि वायु को भाप समुद्र पर होने वाली वाष्पी भवन क्रिया ( Evaporation ) के द्वारा मिलती है। और वायु से जल वृष्टि द्रवीभवन क्रिया (Condensation) के द्वारा होतो है। जब वायु किसी प्रकार ठंडी होने लगती है तभी जल-वर्षा होती है। वायु दो प्रकार से ठंडी होती है। एक तो वायु उठ कर ऊपरी ठंडे भागों में जाने से ठंडी हो जाती है और वर्षा करती है। विषुवत रेखा पर गर्मी अधिक होती है इस कारण भाप खूब बनती है साथ ही दबाव ( Pressure) बहुत कम होता है अतएव हवा हल्की होकर ऊपर उठ जाती है। ऊपर यह वाप्पमिश्रित वायु ठंडी हो जाती है और खुद वर्षा होती है। यही कारण है कि विषुवत रेखा के प्रदेश में अत्यधिक वर्षा होती है। वायु के शीतल होने का दूसरा कारण यह है कि जब वायु गरम प्रदेश से ठंडे प्रदेश की ओर यहती है अथवा पर्वतों से टकराती है तो ठंड के कारण द्रवीभवन क्रिया ( Condensation ) प्रारम्भ हो जाती है और वर्षा होने लगती है। ऊष्ण कटिबन्ध ( Tropics ) में जहां वर्षा ८० इंच से अधिक होती है उसे प्रति वृष्टि, ४० से ८० इंच तक मध्यम वृष्टि, तपा १५ से १० इंच तक अल्प वृष्टि और १५ इंच से नीचे अत्यल्प वृष्टि समझी जाती है। शीतोष्ण कटिबन्ध ( Temperate Zone ) में भाप कम बनती है इस
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