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जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति

जलवायु तथा प्राकृतिक वनस्पति होता है उस पर पानी नहीं बरसता । भारतवर्ष में हिमालय के इस ओर वर्षा होती है परन्तु तिन्वत की और वर्षा नहीं होती। प्राकृतिक वनस्पति ( Vegetation ) घरातल पर वनस्पति प्रकृति रूप में उत्पन्न होती है यहाँ तक कि रेगिस्तान में भी वनस्पति उत्पन्न होती है । यद्यपि मरुस्थलों में उत्पन्न होने वाली वनस्पति बहुत छोटी तथा बिखरी हुई होती है। वनस्पति निम्नलिखित बातों पर निर्भर है-गी, वर्षा वायु. रोशनी और मिट्टी। अधिकतर गर्मी और वर्षा ही पर वनस्पति निर्भर रहती है। एक से तापक्रम वाले प्रदेशों में जहाँ अधिक वर्षा होती है वहाँ वन होते हैं जहां वर्षा साधारण होती है वहाँ घास के मैदान होते हैं और जहाँ वर्षा बिल्कुल नहीं होती या बहुत कम होती है वहां मरु. भूमि होती है । भूमि पर वनस्पति के तीन स्वरूप मिलते हैं--(१) वन (२) घास के मैदान (३) मरुस्थल । वन और घास के मैदान भूमध्य रेखीय वर्षा के कटिबन्ध में और मानसून वाले प्रदेशों में जहाँ वर्षा ८० इंच से अधिक होती है वहाँ वायु और मिट्टी नम भमध्य रेखा रहती है । गरम और नमी के कारणं यहाँ के वृक्ष सघन प्रान्त के सदा और बड़े होते हैं। प्रकाश पाने के लिए इन सघन वनों हरे-भरे धन के वृक्ष सदा ऊपर बढ़ने का प्रयत्न करते हैं। जंगली अथवा (Selvas) लतायें इन बड़े बड़े वृक्षों पर चढ़ जाती हैं। इनका श्राकार प्राय: इतना बड़ा हो जाता है कि वृक्ष सूख जाते हैं। भूमध्य रेखा के अत्यन्त सघन वनों में पत्तियां इतनी सघन होती हैं कि सूर्य की रोशनी भूमि तक नहीं पहुँचती और वहां सर्वदा अंधकार रहता है। अमेज़न और काँगों के वन ऐसे ही हैं। अन्य वन इतने घने नहीं हैं और . थोड़ी बहुत रोशनी पृथ्वी तक पहुंच जाती है । इन वनों में कठोर लकड़ी के वृक्ष मिलते हैं । इनमें मेहागनी, श्राबनूस मुख्य हैं। इन वनों में स्वर, सिनकोना, नारियल और ताड़ व्यापारिक महत्व के वृक्ष भी बहुत पाये जाते हैं। ऊष्ण कटिबन्धीय जलवायु की मुख्य उपज लम्बी घास हैं । इस घास में ___ कहीं कहीं वृक्ष भी दिखलाई पड़ते हैं। अफ्रीका का ऊष्ण कटिवन्ध के बहुत, बड़ा भाग सवांना घास से भरा पड़ा है। वर्षा होते घास के मैदान ही घास शीघ्रता से उग आती है और गर्मी में सारा प्रदेश और सवाना सूख कर भूरे रंग का हो जाता है। जिन प्रदेशों में वर्षा (Savana) . कुछ अधिक होती है वहाँ वृक्ष भी अधिक पाये जाते हैं।