पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१०५

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+ प्रासमयीर पनीबसी पास उठा र रामामी भोर देता और मीठे स्वर में भा-"प्राय हम बहुव एप है और उम्मीद है सबमेतीची पर- स्वी पानी भइफ वठामे में राषचत्रवान दरेग न परेप ।" तम्य गवा अपनी जगह पर ही लड़ाया । शारीकी रायप सेवास भोले और भी खास हो गई, परन्तु उसने मन के गुस्से मे रोकसभा-"बाममन, हमारे पास गर्ने मतना पर रर में महत पम्यो" "मुक अपचोस, शादबारी, मैं ऐसा नहीं सकता" "क्यों नही सकते दिशपर " "यह मेरे दीना मान शिक्षाफt" "लेकिन हमारी मुखी है म त रिस से माहवी है।" "मैं मापीर गबपूत, हुबर शादी की हत माक्व भरमार नही है। "तो तुम हमारी हुक्म उनी पुरव मते हो।" “हुक्म पीजिए कि पापा।" "क्या सचौदनी रात में, इस फूलों से माटो फिचा में पारे गामा म महीबानते कि म दिल से दुर्मचाती है, तुम से रिखी महमद रखती है, मेरमित भौचामेमन, को, स्म पही करें जिसमें में सुपी हो।" “शाहबादी मुझे बचाने की बात दीपिए और फिर कमी ऐसा आमा बबान पर न साइए-~में मही वाह" "पोर हमारी मुरम्मत " "उस पर पास मनठमार नणपती 'मोर, समझ गई। दमको समय दिलर, साकिन हम तुम चाहती है-सिप में। म मेरे दिलबर । मिस दिन मैमे पहिली पार मापेले थे, नमें पाहे पर सपार प्राठे रेखा-विती सप बमीन पर नही परती थी और तुम उस पर पपरी मूर्तिी पर