सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुखासाने पपरपार 'हम इसी बीपवरे बने हो। मेमन । म त पनपारित-परिक एवीर पर मानिको। स्पा सद सब करने में अस्विकार है। गर्मजवन श्री पार्व मालूम होनी चाहिए । पिपत का, इवना बड़ा भमौर सिवय माप गया दारा मे नीची मडर लिए एही - "मा हुनर व मुझ पर भते" "गको स्पा मत भून के मुवस्मिा पानी पानते ?' " पास मेरे खिलाफ सा द्वार!" "मन ! म मुमसे सबूत माँगते हो! मायै वा हरव वमाम में माप माम मने पालन किमाई भोर तम पुमसे मत माँगते हो" दाय पप मर होठ अम्वा लगाया। फिर उसने पवे एर दिलर मैंमा-लेप, का बार ऐसा समान वो मेय मा नातिन की पानी के लिए कुछ किया गय पा र "वो तुम वलीम प्रते हो किया सून तुममे किमा" "अगर पर या वसीम कि बेगम यारस्वासन इनर ने दिया बया मी मेहनत मून सहीम परेगा" मा सुनते ही सपा विखमिला रठे। वे एकरम वस्त से राहत परे। परम्स राव की माल पाकी मावि घिर गए । मनाने रेनो हामो से प्रति रहो। उनी गतियों से प्रामुमो माया पी।सेवा, पर इससे पय मी विचलित न शेन पथ मे प्रा-" प्रिम मोयते सनिए । मम भाजीर शाहको पठान यम-विखे हुए पाद सभी पनवे १ौर को उस पानी की सिम प्रस्तिाय दुखद सरनेम एक अग्धा परिधी, अपने बेटे को तपते व मेमनेट को