पृष्ठ:आलमगीर.djvu/१९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारमपीर होगी, कप पान ही न पड़ता था। सुतेमान पोरे पर मगर हो बसी मुस्वैदी से वोपलाने त्र मुनारिया करता मा टन साहित परखा दौर धूप कर पा था। दोनों प्रसिर सेनापति उदासीन भाव से इस अमपरिपत पुर में देत रोपे। शाहबारे ने इस समय में उनकी कोई सम्मति तक नहींनी थी। महागम बप सिंह मे दिक्षरों से सप्ताह के भासिर दिखेर ताँगुमा के पास सममनने के लिए रवाना किया। गोलाबारी वो होती दी थी। सेमापति दिर बाबा.बार साप लेबर रास्ता घट पीछे के माग से गुप के सरकार में पहुंच गया। सूचना पाते ही पना ने सेनापति दिखेर जाधे मादरपूर्वक अपने जीमे में मुशा लिया। गधारण कुरालवा के बाद दोनों में पावे प्रारम्म हुई । रिसर में बा-"मैं हु के सरकार के रूप में हाजिर हुमा ।" "हमें मापा इस्मीनान है।" "मुझे मिराबाबय विदबीमे माप लिदमठ में मेवा से ही सेवर मोर औरसार से सपा के।" "मिर्थ यात्मवादी भोर सिदमत मानता।" "मवलीम पर किहुमर उस रास्त से पदहा देने इरादे से तरारीफनाए । बिसने भापके वालिद श्रे, को दीनोदुनिया के मालिक और पिदुस्तान के शहनशाह , मार गता है। "मेराक, मेरा, और मैं उससे बिना बना लिए न सौगा।" "मगर हुदूरको पालार रिगुल मत मिली, शानदार जिम्दा और बिस्कृत नन्दुत्व , मैं पाप पोन दिलाता है।" "या सुनहर मुझे बहुत पुणो हुई है," गुण बरा भरणा- इस पर दरम्व ही रितेर सौ मेगा- "इलिए गहनमा माया है कि भार अपने सू को भारत वरीफ से बाप, पोर इस मौके पर मारने का मुरमत और हमव बोपगार के लिए दरण, उससे बादशा मे पग्न का मार मार मिर्थ गमा हुर