पृष्ठ:आलमगीर.djvu/२१३

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मालमगीर F माम से पुकार पर क्या अनेक प्रकार से उती सोपचोर इसे मरे पर पदाहापा। प्रमी पर मुक सेम्प पूरा पिभाम न कर पाई थी कि दिन सूया साप ही नदी के उस पार वाही हरकर उसे दीत पड़ा ।। मुगर फोरन पते पर पदमा मौरक्षा के सीमे पर पापा । मुया श्रीमापाई मनते ही सब ने पाक से पार निकाय र रमा पूमी और भादर पूर्वक उसे होमे में ले गम पी मसनद पर बैठाया। मुगद मे मुरार प्रा-"पाप रेकनिंग भक मा गया । पलिए, आप हो चाय और देशा पनि चैन कितने पानी में औरहब ने मुरकुगवे दुए और हाय मलते हुए पा-"ममी मी, ममी नही, मगर मापक मी भब भा ही गया , जब का पापी बहादुरी के पैर देखने को मिखेंगे। पिसाब तो हमें सुपचाप ही पोराना पाहिए।" "पुपचाप पड़ेगने से हासिल " "दुगर, पाप देखते ही है कि हमारी फोम पौ-मादी और लखा । फिर तमाम श्रम प्रभी पहुँच मी नहीं पाई। उसने का पहाडी यस्ता पार किया है, इसके सिवा एक और मी मस्ताव है।" " मस्सरत क्या" मुरादप रन मुनगर भोरंग मे मुरम्य परमा-"ग्राही गरेकासिद इस प्रमर चिट्ठी पर प्राए पे विसरत बादशार तामत मिन्दा है और हमें अपने सारे सौर पाना पाए। होममे पक्ष परा राशना मुनासिब समा। इसम या पी किपा माल परा की कारखानी पी और चिहियों पानी थी। पषत सिंह में बनता। पाप में माने बाचा नही । मगर कासिम खों मे इस प्रसादिम पाने का पका बारा पिप है। सपने मेरी उस पावर पर मी प्रमश करने ध्र परापर कर दिया