पृष्ठ:आलमगीर.djvu/२७५

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मासमग्र पा, पोरम स्मा पर है। मागरे में ही रहिए, मोरंगको पाने दीथिए।" औरंगलेच कैर-नीच धमाकर उसे बप पाया था। पर उन्ने अपना सरर और दामनी औरण से प्रहारा रस्ती थी। औरग मागरे से मधुग व मुगर की शाम में लगा पाकी पस इस मेवा, कमी कोई सौगात | पारंपार मिनाम पुरावा । इन सब बातों का पा प्रतर पड़ा कि मुराद औरंगजेब पर प्रसन हो गया। सामा सहमता, मो मुपद का गुलाम और एक वीर पुष सब श्योपान मगाया। उसमे भी अपने पासून लगा रखे और ऐसा बयोवस्तर विमा या विमपुग पर योगी भोरंग मुगद केजीमे में पप-ठले बस्तारासा बाप । परन्तु औरंगधेग इससे प्रतापपान न था। पहायों की मर्ममेदिनी सो पा समम गवा पा। इसी से उतने निश्चय कर लिया था कि प्रबरेर मना निरापर मी। रात दिन पन्द्राबून पी। गमा बेरपी, दिन विपने में अमी देर बी मपर पूरब की चमर और रूकी मपानकवा में कामी कमी न पाई थी। परन्तु प्रोणपको इन व प्रास्व प्रापदामोशी बप मी परवाह न थी। गरम श्रीगवरपा से अयप्रत पाते ही ठप्पने मीर प्रतिशती पोरेसा मेमा । सीमे पर कहा पारा लगा था। घर या अरवार यसवा या और मीर हाप पंप व मावलीमे एक भेने में ला उसी मावमगी रेनवा रहा। एभएक पौरंगने मे परवेज मोती उसे पूरा- वो तुम हर तरह पार हो "प्रापती" मीर ने मिठ से पूषा। "" औरममेव पीर पर सर से पा और गले से पर मातमी सकार तार उसकेप में पड़ा दिया।