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पृष्ठ:आलमगीर.djvu/३४१

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प्रासमगीर अनिवापूर्वक निम्न के दिनों में इचिप में परे हुए प्रषिप्ररी और सैनिक अपने पोर पाने के लिए बेचैन हो गए। यहाँ साकि एक अफठर रिशी प्रामे के लिए एक वर्ष की ही मेरे लिए पावणार को एक लाख रुपया मैंट करने को तैयारोमा । नाबपूतो मे भी शिधयत की किम इत प्रभार बिन्दगी भर पदिए में परहेकोमारे बंधही ना हो जायेंगे। इपर रची माणका शाम्न प्रम दीक्षा दोपर धीरे धीरे विमावा गप्प, मया गरीब होतो गा, लोगों में प्राचार प्रणा और प्रर्मक्ता पद गई। इसके अतिरिक गपपूतो में, सिहों में और दूसरी जातियों में बोरियोह और अयाम्ति पीब पारगार हो गया था, उनम पूरा विश्रत प्रा और सामान के सारे उसये माग में एक पर की प्रयमकया फैल गई। पर परिस्पिति पचीस वर्ष सपनो ही। पाव पोहा न था। इनमे प्रक्ष में वो भारतीय समायी एक पूरी की पूर्व पीदी निनाई। परिप में शिवामी मे प्रोरसायेब की गैरहाधिये भताम उठाकर अपने पन्ना पूरा विस्तार कर लिया था, और अपनी यतिगत बदासी दी। पहरषिरा प्रकार सर्वत्रो और समर्थ रामापन बैठा था। प्रयाप्रे मारने से और दो पर दरत ने खूटने से उसकी पाक बम पई पी। पीबापुर और योगा राप उससे भव नाते थे । रक्षिण में प्रवेो उठी की तूती बोच पी पौ। शिवानी को परास्त करने के लिए चौरंगवेर मेचो उद्योग रिए पे, उनमें एक भार गम बपति की सहायता से उसे इतनी ही सफलता प्राप्त हो गई थी किसिवानी में सामान्य प्रति राममय बने रहने की स्वीकृति २वीपी और मागरे मी पता गया। परम्तो परम श्रेणी के पमाडी पटियो मेज सम्म न पा शिराबी प्रागरे सेनोर कर पाय तो इतने पूरे देश से दधि में मुगलो प्रहार प्रारम्भ कर रिया, और अपने गम का अधिक-से-मपिक विस्तार से दधिषकी