पृष्ठ:आलमगीर.djvu/३४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नियम परि दए थे। प्रभमत गवद गोभी और हासी पहार में हो भूगों मरते थे। ग्राही मारनपोछे पास-साठ बार मगठे हरेरो पा दम रमवा गा पा, दो मोश पाहे तो सपने और पाप छात्री कर सेवा पा । मेमा मुगहो पर न पा । मुफ्ती मनसे मरने सगे थे। उनके पास तो, सूदीर, दममा सब कुछ मा सामान ने लिए सी और वोमी । और इस प्रकार मराठा रेकगठित सैनिक संगग्न में मुसि हो गए थे। अन्त में प्रोरानेर त बनी १७.कोरे व पप बग अहमदनगर लोय! त उही गस नमे पार पीपी। उतरेवा बीवन मर के सपनोभा परिवाप पचनेतिक क्षेत्रों में उसय ही दुमा । सामाम्प में प्रयास ही। उतरे खरे संगी-सावी, अमीर उमराव कर मर गए थे। एकथोर धरत बिदा पा यो उम्र में पारपार माता वोग पा । उत्तम रिस पिरान ला रोगमा पार पापा यादी बारियों पर प्रसार गबता पा तो उसे अपने पायें भोर अनुभवहीन, ऐपल बिम्मेशरी से कमाने वाले पोड़ीमसे नौवयान ही मजा पाते थे, बो निबर दरकार में पान र गते । सिसीमारमी उसावर थे, उसी में चीनन सविनोमानी हो चली थी भोर दूसरी उनी गम उमपुरी मात-कामरम्प माँ, बो पशु र मूर्ख और रात्री को! समयमय सनी, मनी और पापा या। उसनेमाने मारी mमो का उरतंपन दिखा पा। मराठो उपद्रव बात पद गए थे। पोरवपापधियों गददी बादी दी। रातीसरर मास समय यो माम्मद प्राहम अपने प्रविमिपोपस्ते सायर याराने प्रेफिक में बा। नीरे प्रतम प्रसरों भी गिरी में सम्मिशिव रोगा। उसके सर मेरे भारत में बसेपरचार प्रेसर होतीऔरे होवे । उक्ने