पृष्ठ:आलमगीर.djvu/४५

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पातमगीर परत उत्तकी सबसे मारी हानिकारण उसके प्रति पिता का भारमता से अधिक प्रेम पा। उसे देव दरबार में रस्सा गा । पल कपार तीसरे अभियान को छोड़ कर उसमे न वो कमी किसी पुरम संचालन किया, न मी किती प्रान्तीय शासनपरया लिए उसे ही मेन गया। प्रमत में उसे न दो गम्प रमे का अनुभव था न पुर। पठिनाई और लतरों से पा सदा दूर रहा। सेना के साब भी उतना कमी पर्व महा। इसके अतिरिक उसके एका मभाव और उसी अतुल सम्पदा-ठसमें पील-सम्म-मोर दूरपरिणबीमन उमा सकी। मुटे चापलूसों से घिरे मकर मुपस मामाम्प के उपराधिभरीने सामावि मावना ने उसे पर्मी और प्रमादी बना दिया । बा परिसत प्रबरप या, पर म नब- परिण को नही पाय समता पा। मी स्वामिमानी और सुपाम्प पछि उत्तपमनी और अविवे स्वामी से प्रतम न था। निस्मर पर एक प्रेमी पति, पाय पुष भोर मे पिता मा-पर श्यपत्र प्रा पालक या नहीं। पुरवों से बली भाती हुई शान्ति और सम्पदा मे उमरको उचेन्ना ठस्ठी प्रदी। गठन करने या सास करने म सग या नहीं उठा सकता था। नपा परिममी और विमान दी था। विरापित दवा तो उसमें पी ही नहीं, बो मस्तु से विषयबीन साती है। न पा सेनापति पा, न गामक । इस प्रकार ससा, गक्नीवि, गहत, गौर और पूरदर्गिणा तमा अगवानवा से हवा रहित र सीपे-सादे नागरिक पति का, प्रतापी मुगमवस्त के लिए बनी सहाई पर मामारा औरंगन से सेनानायक और फूट-नीति के पपिरत से पाया पड़ा था।