पृष्ठ:आलमगीर.djvu/५४

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रछा करते ही दरम्द पार विस अंगम पा शाहमादी की सेवा में उपस्थित कर अपनी कला का विस्तार करती थीं। इनकी मुरीली सानों से मदेव ही गम महल तरवि सेवा रवा पा ये सब बहुमम्म ममताब पोर परी पल पानवी थीं, जिन पर उम्पे बनायव बरे गते थे। इनके नाप के समय इन पाणा से सपा बमारयत दूर-दूर र परा पर गिर राखे पे किन मुगार उठाना ये अपमान समापी । प्राह प्रम मा प्राय परा पर मर ने प्रावी तो उने मुनियों भरेरे, मावी, मानिक, पुरा फरा पर पितरे मिशते थे, भो अब उनके माप-दादा। एनीही एक पसनी की बारहार ने बैंचा रतमा रेकर अपने परम में रख लिया था, और बा एसबीर ने वारयार से किसी पोरदो मास में दासिल करना प्राधा नही-चा मने पार दिया था। माम प्रदा रोमन पारे ली हो। पाव सो मियों उस्तादनी मुगलानी पी जायेगमो और शारवादियों पदापा परती पी। महम को लाने महुपा गुतिस्ता मोर बाम्ती पदा करती थी। मसिया प्रेमको बाक्सी कविताएँ तथा प्रस्तील रिमे-भानिया पुस्तका रती थी। हरम में कोरिया गा-भर में पायारीसेया पाती थी उनके पूप-पृषा पे । उनमा मानिक वन उन पर भदा मनुमार १५ोप तर नियनका। पार बीना में प्रोरसे नित ची उनो करे यसग प्रायबार पिता दरपारी मननगर अमीर उमरा पाने में, चमी मावि मानक भीतर पभोगहें मौसमी ची पोरा पारा नामत परम प्रारी नाना पाते होतीबनाने मोरदापन रेग चार धाम पर पाएँ प्रमागित पाते । न मासा प्रादो पर सेाि निश्वाती यो पाव दोष