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पृष्ठ:आलमगीर.djvu/७७

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१२ मानमवीर 1 बसमान होते थे वो या तरत मोसमा हो वाफ्गा । मुझे परत सग पामगा। "किस बात मेगमा बादशाह ने मुखर पपणे बान से का। "पापी सनद में एक पान खान पाताt" "इस पर कामास मापारी बेगम ?" "इनर शायद इन मामहो पर गौर ने इतना मिलती। मगर पास्वामका पाप आम्ही तर नी पनरों, पिकाया पाट मारबिना सन रोगा।" "राम, उसकी पोरव रिसी वप सममा-मार कुराक को, मैं शारदा माँ को ठीक सगा।" "नहीवर उसन पान २ देने का मुम्मित पर सिम २मोर सारख्या वो मे पुरधार एके सिताफ पयावत का करार दिया "अमाप मेगामिरे" “श्री दत, और प्राश्य मा परचना मारनुमसा गिसे दुर ने पनी मत पम्मी है, उन सबो सता रहा है। मप्रवी! अम्मा, किशोराका गोहमा है। इसे प्रेमरेकर दमिन न मेखिए, बार गाने दीजिए | तोरसामे वापसी का परवाना मल पर थिए।" "नही बेगम, इस प्रम पर हमने पहली गौर रविवा। ऐसा बानियममा भूदा मोर पूरमेश मारपी तनी मेवी कमी न करेगा लिमसे बगावत के पौसाब से मिल पाय, इससे उसे इस मी काबरा न होगा। "हुनर तो परमार में दिन-दिन दवे हुए बगावत के वचन अब भी परसा नही !" "वन इसमें शरीक