पृष्ठ:आलमगीर.djvu/९१

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प्राहमगीर परम्नु यो मनसबदार पाती गप-नाम पाया या उसने आँसो में इस दिन सरदार को देखते दोन तर पाया- परम्नु र तर समा ने उसी तनिक मी परवाह नहीं की। अपने पोरे में पर रेम और चार परम भागे पद पर पानी के पीये-पीछे पहने जपा पिता और परीष-प्रारदिनी रेलवे स्टेशन और कम्पनी पग, होइन यम ने एक व्यप बनाई थी। यह सराप उत समप मारवर्ष भर में मेरे माख पी। इसकी जाये इमारते हुमीमती पी और ऊपर बोयो पालीशान मुखभित कमरे बने थे। शिव रेग-वेग के लोग ठारते और फरीहरते थे। सय में महामे के लिए पोग, ना मोर पोर पापीयामे बने में इस सपब एम्सबाम के लिए बेगम मे योग्य कर्मचारी नियुक्त किए थे। इस समय वर मी सराव समूची नर वेयर मी हो पाईपी और अमर मिली हमें पिव-विचित्र मार रोपे। इस बक यम की सपाय यो बगर श्री प्रोर पापी थी। इसकी सूचना राम के परोमा प्रेमी मिस बुध पी और वहाँ भी असम में पपाई भी भूमधाम मची पी। पब गा-पार पार करके विनय बिए गए थे। दुत से सोये, यासाठी अपये-अपने श्रम में लगे थे। उस समय वयसप्रपा माग बहाँ बेगम तारीफ रखने पासी दी और बा एक सूत्र छोय-सा आगीपापा ममी वि मबाबा गा पा । पहरे पर्दे पा मुधम्मित तमाम दिया गया पा। पागीप के पीप गमरमरी पारगारीबी। पर्यो गम भी पारी वरी। गामी भीनी मुगम्पपा में मर गी पी। पाय माजी मे सारी बारादरी में से लगाया था। पर शापा मारण्य . 1