पृष्ठ:आलमगीर.djvu/९५

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पेगम की पारदरी बौदनी यह पी और मारी बारी एमन में शादी पनी सास बगियों के बीच मचना पर पड़ी अपनी मिस अंगूरी रागर पी पी पी । हो तो उसके लिए प्ररस, परमीर और प्रात से कीमती योगगी और रस्तपोल मंगाई भावी यो, परन्तु उसकी अपनी जीरीमिय बस्तुमा पी-चोखास उसी श्रीनवरों के सामने अंगूर में शुमार और दी मेवाएं गलर बनाई जाती पी। पर भवि सुगरबत और स्वादिए दोती पी और बेगम पारा हावी- इस राग और पर दोर बढ़ाती थी। माया सुरावो मबी। पत सी चिन्ताएँ उस मस्तिपणे परेशान र सी ची। योनी ही मुगल उस्मन की नीति में पर सक्रिय माग नेवी बी, उती पसरबई योहा न पा । परन्तु इस समय तो उसे अपनी ही चिन्ता ने माय पा । इसी से पारा पर पापिने मारी बावापरत का हो पाँचती पाई थी। प्रकार पापणा के समय ही से या दस्तूर पहा मागा पाकि मुवन मारणारे सामान बाबाविणे शादी नहीं र पाती पी, इससे भोगना पैदा होती गती और मुगल रमा पावापरप हमेशा पिता पा परन्त दारा शादी का विमा मबापत सौ से करने की पा मरर पुन पा । नबाव ना मन का शादगाध पा, सुन्दर और बन पा। पर शाबादी मेम मी परवा पा । बहुव दिन से बहन-दुताय और मुगश खानदान में बलबस पती भावी पी।