पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१२८

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ग • रामलीला जुरे जहां महायीर राजन की महा भीर, महाराज धीर रघुयोर पंज. अति की। 'आलम', जनक जानफी की मरजाद राखी, . दोनी पति कीनी,छत्र छत्रिनि के छति, की। कर फररे कर उठी दै घनुप धुनि, यारद सुनत मुधि मुली जंग जति की। रुंद के फराक मुंदे. लोचन तराक' इन्द्र, ___‘गुन के तराफ' छूटी तारी भृगुपति की ॥२६१० पनव पुरानी ढरि पानी सो धनुप आयो, . छुपत छ-टूक भयो तासों कहा...करिये । 'धालमा अलप अपराध साध जीय जानि, १. . • छिमा छीन फरि कत शोध भार भरिये। द्विज कर सूमियत बूझियो न जूमि पर, कठिन कुठार आनि फंठ पर धरिये । गुरु मति लोषिये न पूजा पाय कोपिये. न, तासो पाउ रोपिये न जाके पांउ परिये ॥२६२॥ झायो चिनगी जगाइ लकि गूग लाइ, . , उठी है वचूरा की कँगूगही सो जागी है। मरके भवन भगने ,भट भारे भारे. " मीरे भरे हैं भूप दीप सभा-भूति भागी 'है। , १-तराक = शोधू । २-m पोर इन्द।३-भी- भौति।।