पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१२९

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आलम-फोलि 'बालम' बिलविं लखि लास दी ज्योलकांजर, : ' यूझि देख लंकापति देहलिगि दांगी है। खोने लोने भौन नये छिनर्फ में छार भये, ' होनहार ऐसी यह सोने मागिलागी है ॥२६३३ यारं धार यालिसुत "घोले अरें लंकापति, कौन गति मंति ताहिदीनदी यिधिं यावरे । । अजों जीय जानि केरे जानकी ले जाय मिलि, पैर यफसाइ गहि राघो जू के पाय रे । 'बालम' अलंप फोप किये ही ते ऐखहुँगे, !" • 'पानी मैं तरीहे" संठ पाहिन की नाव रे। कंचन जो संच्यो है सुवचि हैन रंच एक, ___ रचना के भौन सय राख है राव रे ॥२६॥ जीत गई प्राननि भनीत भई भीति पसि, . वीति गयो श्रीसर वनांव बौन' वतिया। ! ऊ भई देह' वरि चूंक है सहभई, हक बढ़ो पैन विधि टूक भई छतिया । 'संख' कहि लांस रहिये की सधुचनि कपि, । कहां कहीं ताजनि कहोगे. निलंज तिया। और न फलेस मेगे नाथा रघनाथ श्रांगे, ' ' भेतुं यह भासियो संदेरा यह पतिया ॥२६५। mmmmmmmmmmimmerco.m..........-- १- मुग्राठ, जलता हया अंगारा । .. . .