पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/२८

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चंद-कर.. पूरन • परे जु कुमुदिनि । पर, . कोने हाइ भाइ मानिनी सुभाइ के। डोले दल विगसि प्रकास्यो पौन मंद जाइ, . कुसुम डोलाइ छाई जपा जूही जाइ के। पालम सुगंध बन केतकी कपूर सन, लायो लाइ कालिन्दी के कन सुख 'चाइ के। प्राली तजि मौन फारिगौन हित-मौन'चलि, ____केल फरि फेल-कुंज' कोलि के उपाइ के ॥२॥ फाहे को खुभी उतारो' यहुगे तरोना धारी, " कोटिक तसेना युभो छवि पर धारिये । चन्दन को वेदा सोहै उड़ बिधु रवि को है, ' अंजन हूँ सेत लागे ऐसो आँखि कारिये । तेरे आँग को निकाई कहाँ लौ फहोंगी माई, रति हूँ पचति अजों ध्यान हूँ न धारिये । पक्षोई बिलम्बु भारी करो जिनि और प्यारी, आलम अकेली कुंज एकले बिहारिये ।।। पिय की कहनि हां हो आतुर है पाई गहें ' : ___ताको यह मानयती"शानियो उपाउ है । तू चलि ही माई तौ लौ शत ही चलाई जाय, १. चतुर संखीन, नेक देखिये फो चाउ है। १- तुंनोजा (फदली ) को कुंन! . : ...