पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/१२०

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माडोका युद्ध । ११५ दान दक्षिणा बॉटन लागी तुरतै महलनविप्रबुलाय १३८ जितनी माया रहै माड़ो की सो सब ऊदन तुरत मँगाय ॥ जहाँ खजाना परिमालिक को तामें दीन सबै भरवाय १३६ बड़ी खुशाली में मोहबेमाँ घर घर होय महलाचार ॥ उजरिगो माड़ोत्यहिसमयामाँ जहँ तहँ धूमैं श्वानसियार१४० मैं पदबन्दों पितु अपने के फिरि फिरि बारबार शिरनाय ॥ करी सहायी यहि समया में ताते गयों कथा सबगाय १४१ आशिर्वाद देउँ मुंशी सुत जीवो प्रागनरायण भाय ।। हुकुम तुम्हारो जो होतो ना ललितेकहतकथाकसगाय१४२ रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहें चन्द्र औ सूर ।। मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रही सदाभरपूर १४३ माथ नवावों रामचन्द्र को करिके कृष्णचन्द्र को ध्यान । दोउपद बन्दों शिवशंकर के गणपतिगणाधीशवलवान१४४ दोउपद ध्यावों महरानी के जिनअभिमानी डरे नशाय । पूरि तरंग यहाँ सों द्वैगै तव पद सुमिरिदूर्गामाय १४५ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूपयागनारायण जीकी आज्ञानुसार उनामपदेशान्तर्गत पैंडरीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भवबुध उपाशङ्करसनु पं०ललिताप्रसादकृतआल्हाविजयवर्णनन्नामपञ्चमस्तरा माडोका युद्ध समाप्त। इति ॥