दान दक्षिणा बाँटन लागी तुरतै महलनबिप्रबुलाय १३८
जितनी माया रहै माड़ो की सो सब ऊदन तुरत मँगाय॥
जहाँ खजाना परिमालिक को तामें दीन सबै भरवाय १३९
बड़ी खुशाली में मोहबेमाँ घर घर होयँ मङ्गलाचार॥
उजरिगो माड़ो त्यहिसमयामाँ जहँ तहँ घूमैं श्वानसियार १४०
मैं पदबन्दों पितु अपने के फिरि फिरि बारबार शिरनाय॥
करी सहायी यहि समया में ताते गयों कथा सबगाय १४१
आशिर्बाद देउँ मुंशी सुत जीवो प्रागनरायण भाय॥
हुकुम तुम्हारो जो होतो ना ललितेकहतकथाकसगाय १४२
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहें चन्द्र औ सूर॥
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदाभरपूर १४३
माथ नवावों रामचन्द्र को करिकै कृष्णचन्द्र को ध्यान॥
दोउपद बन्दों शिवशंकर के गणपतिगणाधीशबलवान १४४
दोउपद ध्यावों महरानी के जिनअभिमानी डरे नशाय॥
पूरि तरंग यहाँ सों ह्वैगै तब पद सुमिरिदूर्गामाय १४५
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूप्रयागनारायण
जीकी आज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गत पँडरीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भवबुध
कृपाशङ्करसनु पं॰ ललिताप्रसादकृतआल्हाविजयवर्णनन्नामपञ्चमस्तरङ्ग:५
माड़ोका युद्ध समाप्त॥
इति॥